जम्मू कश्मीर में आतंकियों से लड़ते हुए देश के लिए अपनी जान निछावर करने वाले सिपोय शरद सिंह जी ने सिर्फ एक रात पहले अपनी पत्नी से आखरी फोन कॉल पर बात की थी. नायक मनदीप सिंह हर दिन अपने बच्चे से वीडियो कॉल पर बात करते थे और अपने जन्मदिन से ठीक 1 हफ्ते पहले वह शहीद हो गए.
इन को मारने वाले आतंकवादी क्या बंदूक वाले बच्चे हो सकते हैं?
आज ही दिल्ली पुलिस द्वारा पकड़ा गया पाकिस्तान का आतंकवादी जो नवरात्रों में दिल्ली के अंदर बड़ी आतंकी साजिश को अंजाम देने की कोशिश कर रहा था क्या यह बंदूक वाला बच्चा हो सकता है?
दोस्तों यह मानव अधिकार इंसानों के लिए होते हैं ना कि आतंकवादियों के लिए क्योंकि जब यह आतंकवादी दीपक,नरेंद्र पासवान और माखनलाल को मारने से पहले उनकी जान के बारे में नहीं सोचते उनके मानव अधिकार के बारे में नहीं सोचते तो फिर हम क्यों आतंकवादियों के मानव अधिकार के बारे में सोचते हैं.
अरे क्या जानवरों के कोई मानव अधिकार होते हैं क्या ?
और मेरे लिए आतंकवादी किसी दहशत वाले जानवर से कम नहीं है. जब प्रधानमंत्री कहते हैं कि मानव अधिकार को राजनीतिक दृष्टि से नहीं देखना चाहिए मैं सहमत हूं पर मैं साथ में यह भी कहना चाहता हूं कि इस देश को आतंकवादियों के मानव अधिकार के बारे में सोचना नहीं चाहिए..
पर इस देश में कुछ नेता है सैफुद्दीन सोज महबूबा मुफ्ती जैसे जो इन आतंकवादियों को बंदूक वाले बच्चे समझते हैं. और चाहते हैं कि हम उनसे बातचीत करें.
बातचीत इसलिए करें ताकि इन आतंकवादियों को एक बार और मौका मिल जाए. दोस्तों इन आतंकवादियों को कोई मानव अधिकार के लेंस से नहीं देखना चाहिए.
जब हमारा देश आतंकवाद के खिलाफ इतनी बड़ी जंग लड़ रहा है. हर दिन आतंकवादी पकड़े जा रहे हैं जम्मू कश्मीर के अंदर एनकाउंटर चल रहा है तो उसके बाद सपोर्ट तो आज का मेरा मुकदमा है. जो देश का मुकदमा है देश की जनता का आरोप है और सिंपल आरोप है की आतंकवादियों के और इनके सपोर्टर्स को कोई सपोर्ट नहीं मिलना चाहिए और आतंकवादियों के कोई मानवाधिकार नहीं होते.
मेरी दलील है भारत में भारत के नागरिकों कश्मीर के लोगों के हत्यारों के लिए कोई मानव अधिकार नहीं होना चाहिए.
मेरे साथ जोर से बोलिए नो ह्यूमन राइट्स फॉर टेरेरिस्ट