कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और राज्य में कांग्रेस पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने जा रही है. मतदाताओं ने अपने 38 सालों के परंपरा को बरकरार रखते हुए बीजेपी को बड़ा झटका दिया है. अब दक्षिण के किसी भी राज्य में पार्टी सत्ता में नहीं है. कर्नाटक में साल 1985 के बाद से लगातार पांच साल से ज्यादा कोई भी पार्टी सरकार में नहीं रही है. इस चुनाव में कांग्रेस ने 135 सीटों पर जीत हासिल करके न सिर्फ सभी को चौंकाया है, बल्कि सत्ताधारी पार्टी बीजेपी को करारी शिकश्त भी दी है.
विधानसभा की 224 सीटों में से कांग्रेस ने 135 सीटों पर जीत दर्ज की है. बीजेपी को 65 सीटों से ही संतोष करना पड़ा है. एक सीट पर देर रात तक काउंटिंग जारी रही. वहीं जेडीएस मात्र 19 सीटें ही जीत सकी. चार सीटें अन्य के खाते में गई हैं. इस चुनाव में कांग्रेस को करीब 43 फीसदी और बीजेपी को 36 फीसदी वोट मिला है. जबकि जेडीएस के खाते में 13 फीसदी वोट गया है.
2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 104 सीटों पर जीत दर्ज की थी और उसे 36.22 फीसदी वोट मिले थे. वहीं कांग्रेस ने 78 सीटों पर जीत दर्ज की थी और पार्टी को 38.04 फीसदी वोट मिले थे. जेडीएस ने 37 सीटों पर जीत दर्ज की थी और उसे 18.36 फीसदी वोट मिले थे.
आइये अब जानते हैं कांग्रेस की जीत की 5 मुख्य वजहें…
1. भाजपा की अंदरूनी लड़ाई का मिला फायदा :
बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद से भाजपा में आंतरिक कलह की स्थिति बनी रही। पार्टी के अंदर ही कई तरह के गुट बन गए। चुनाव के वक्त टिकट बंटवारे से भी कई नेता नाराज हुए और बागी हो गए। इसका फायदा कांग्रेस ने उठाया। कांग्रेस ने भाजपा के बागियों को अपने साथ कर लिया। चुनाव में इसका पार्टी को फायदा भी मिला।
2. लिंगायत वोटर्स का साथ
इस बार कांग्रेस के लिए जो सबसे फायदेमंद साबित हुआ है वो है बीजेपी के गढ़ में सेंध लगाकर कांग्रेस का लिंगायत वोट हासिल करना. कर्नाटक की आबादी में लिंगायत समुदाय की हिस्सेदारी 17 प्रतिशत है और राजनीतिक रूप से यह प्रमुख वर्ग है. कांग्रेस नेताओं के नेतृत्व में समुदाय के एक वर्ग ने इस चुनाव में कांग्रेस के लिए समुदाय के समर्थन का वादा किया था. इसके साथ ही कर्णाटक की 70 सीटों पर लिंगायत सीधे तौर पर किंगमेकर माने जाते हैं और इनमे से पुराने मैसूरु क्षेत्र सहित सात जिलों में फैली 61 सीटों में से 30 सीटों पर कांग्रेस की जीत का नेतृत्व करके अपनी ताकत साबित कर दी. ये जीत एच डी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली जेडीएस की कीमत पर आई, जिसकी संख्या अब तक के सबसे निचले स्तर 19 सीटों पर पहुंच गई है.
3.आरक्षण का वादा दे गया फायदा :
ये भी एक बड़ा कारण है। कर्नाटक चुनाव में भाजपा ने चार प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण खत्म करके लिंगायत और अन्य वर्ग में बांट दिया। पार्टी को इससे फायदे की उम्मीद थी, लेकिन ऐन वक्त में कांग्रेस ने बड़ा पासा फेंक दिया। कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 फीसदी करने का एलान कर दिया। आरक्षण के वादे ने कांग्रेस को बड़ा फायदा पहुंचाया। लिंकायत वोटर्स से लेकर ओबीसी और दलित वोटर्स तक ने कांग्रेस का साथ दिया। वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस ने ये भी वादा कर दिया कि जो चार प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण भाजपा ने खत्म किया है, उसे फिर से शुरू कर दिया जाएगा। इसके चलते एक तरफ जहां कांग्रेस को मुसलमानों का साथ मिला, वहीं 75 प्रतिशत आरक्षण के वादे ने लिंगायत, दलित और ओबीसी वोटर्स को भी पार्टी से जोड़ दिया।
4. 40% कमीशन सरकार’:
कर्नाटक में कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ जोर-शोर से भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया. पार्टी ने बोम्मई सरकार को 40 परसेंट की सरकार और पे सीएम का नाम दिया. कांग्रेस के शीर्ष नेता से लेकर स्थानीय नेता तक वोटिंग के पहले-पहले तक इस मुद्दे पर डटे रहे. यहां तक की पार्टी ने आखिरी समय में कर्नाटक में न्यूज़ पेपर के स्थानीय एडिशन में भ्रष्टाचार की रेट लिस्ट भी जारी की और भ्रष्टाचार के मुद्दे को स्थापित करने की कोशिश की. चुनाव पूर्व किए गए एबीपी-सी वोटर के सर्वे को मानें तो राज्य में लोगों के बीच भी भ्रष्टाचार के एक बड़ा मुद्दा रहा. हालांकि बीजेपी भ्रष्टाचार के सभी आरोपों को खारिज करती रही.
5 .BJP के बागियों का साथ
कांग्रेस ने बीजेपी से नाराज चल रहे कई नेताओं को पार्टी से जोड़ा इनमें पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व उप-मुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी और एस भी शामिल हैं. शेट्टार लिंगायतों के बनजिगा संप्रदाय से ताल्लुकात रखते हैं. वहीं लक्ष्मण सावदी तेली समाज से आते हैं. दोनों ही नेताओं की अच्छी पकड़ मानी जाती रही है. हालांकि शेट्टार को हार का सामना करना पड़ा है. सावदी ने बड़े अंतरों से जीत हासिल की है. वहीं कभी बीजेपी के करीबी रहे एच. डी. थम्मैया को भी पार्टी ने चिकमगलूर से टिकट दिया. थम्मैया ने बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और चार बार के विधायक सीटी रवि को हराया है.