दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल ने बीते शुक्रवार को उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना को निशाने पर लिया। उन्होंने पूछा कि क्या केंद्र सेवाओं के मामलों में निर्वाचित सरकार को कार्यकारी अधिकार देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अध्यादेश के जरिए पलटने की साजिश कर रहा है।
दिल्ली के सेवा मंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता भारद्वाज ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उन्होंने अपने सभी कैबिनेट सहयोगियों से सेवा सचिव आशीष मोरे के ट्रांसफर से संबंधित फाइल को मंजूरी देने के लिए उपराज्यपाल वी के सक्सेना के साथ बैठक में शामिल होने का अनुरोध किया है। बाद में, एक ट्वीट में केजरीवाल ने भारद्वाज के आरोप को दोहराया।
बताते चलें कि उपराज्यपाल वीके सक्सेना और दिल्ली सरकार के बीच तनातनी का दौर जारी थी। इसी बीच सेवा सचिव के तबादले को लेकर एलजी और केजरीवाल ने गुरुवार को मुलाकात की है। मुलाकात के बाद केजरीवाल ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा था।
संविधान के अनुच्छेद 123 में राष्ट्रपति के अध्यादेश जारी करने की शक्तियों का वर्णन है। अगर कोई ऐसा विषय हो जिस पर तत्काल कानून बनाने की जरूरत हो और उस समय संसद न चल रही हो तो अध्यादेश लाया जा सकता है। अध्यादेश का प्रभाव उतना ही रहता है, जितना संसद से पारित कानून का होता है। इन्हें कभी भी वापस लिया जा सकता है। अध्यादेश के जरिए नागरिकों से उनके मूल अधिकार नहीं छीने जा सकते। केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति अध्यादेश जारी करते हैं। चूंकि कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है। ऐसे में अध्यादेश को संसद की मंजूरी चाहिए होती है। अध्यादेश को संसद में छह सप्ताह के भीतर पारित कराना होता है। अध्यादेश जारी करने के छह महीने के भीतर संसद सत्र बुलाना अनिवार्य है।