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जिस पवित्र सेंगोल की कांग्रेस ने 75 साल तक उपेक्षा की; प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसे सही स्थान दिया, जानिए कैसे

जैसे ही गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में सेंगोल शब्द का इस्तेमाल किया और बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नए संसद भवन में इस ऐतिहासिक और पवित्र सेंगोल की संसद में स्थापना करेंगे। अब पूरे देश की उत्सुकता बढ़ गई कि आखिर ये सेंगोल है क्या? प्रधानमंत्री मोदी इसकी स्थापना क्यों करेंगे?

गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि आजादी के बाद ब्रिटिश सम्राज्य से भारत को हुए सत्ता हस्तांतरण में इस सेंगोल की सांकेतिक भूमिका रही है। अमृत काल में जब भारत दुनिया भर में अपनी सही जगह बना रहा है, तब इस सांकेतिक और ऐतिहासिक धरोहर का महत्व और बढ़ जाता है। इसलिए ये तय हुआ है कि इसे नई संसद में ही लगाया जाए।

इतिहास, परंपरा, धर्म, सत्य,और न्याय के इस प्रतीक सेंगोल को कई नेताओं की मौजुदगी में 1947 में 14 अगस्त की रात पंडित नेहरू को भी दिया गया था। तमिलनाडु के थिरुवदुथुराई मठ के अधिनाम पुजारियों ने ये सेंगोल पंडित जवाहर लाल नेहरू को दिया था। ये पुजारी इसी विशेष मौके के लिए दिल्ली पहुंचे थे।

आपको बता दें कि आजादी के 75 साल बाद भी देश मेें कम ही लोग जानते हैं कि ये अंग्रेजों द्वारा भारत को सत्ता हस्तातंतरण करने के समय का एक बड़ा प्रतिक था। 14 अगस्त 1947 को नेहरू जी को सेंगोल मिलने के बाद इसे प्रयागराज में आनंद भवन में रख दिया गया था। यह नेहरू ख़ानदान का पैतृक निवास है। 1960 के दशक में इसे वहीं के संग्रहालय में शिफ़्ट कर दिया गया। 1975 में शंकराचार्य ने अपनी पुस्तक में इसका जिक्र किया था।

सूत्रों के मुताबिक जो खबर आ रही है उससे पता लगा है कि पीएम नरेंद्र मोदी को करीब डेढ़ साल पहले सेंगोल के बारे में 1947 की इस ऐतिहासिक घटना के बारे में बताया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे ढूंढने का आदेश दिया। 3 महीने तक इसकी खोजबीन होती रही और देश के हर म्यूज़ियम में इसे ढूंढा गया।

अंत में सेंगोल प्रयागराज के संग्रहालय में इसके होने का पता चला। पंडित नेहरू के बाद की सरकारों ने भी भारतीय संस्कृति और परंपरा के गौरवशाली इस प्रतीक की कोई पूछ नहीं की और इस बीच करीब 75 सालों से सेंगोल इलाहाबाद के एक संग्रहालय में गुमनाम पड़ा रहा। 1947 में जिन्होंने इसे बनाया था उन्होंने इसकी सत्यता की पुष्टि भी की।

महान चोल वंश के राज धर्म के परंपरा के प्रतीक का कांग्रेस ने हाथ में पावर मिलते ही सेंगोल की उपेक्षा शुरू कर दी थी। पहले उसे आनंद भवन में रखा गया और फिर सेंगोल ने 75 साल गुमनामी में रहा। देश के अधिकतर लोगों को यह पता भी नहीं था कि सेंगोल क्या है?

वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं जिन्होंने देश के लिए नए संसद भवन के जरूरतों को पहचाना और और रेकॉर्ड समय में संसद भवन तैयार भी गया। प्रधानमंत्री ने अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट में पूर्णतः भारतीय सनातन परंपरा को ध्यान में रखने का काम किया है। ये बात इससे ही सिद्ध हो जाती है कि सत्ता परिवर्तन के प्रतीक ‘सेंगोल’ की कांग्रेस ने शुरू से ही उपेक्षा की और अब प्रधानमंत्री इसे नए संसद भवन में स्थापित भी करने जा रहे हैं। इससे साफ पता चलता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की सौंदर्यीकरण और विकास के साथ साथ पुरानी परंपरा और मान्यताओं को भी साथ लेकर चल रहे हैं।

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