भारत के आजादी के वक्त 14 अगस्त 1947 को पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू को सत्ता परिवर्तन के समय अंग्रेजों से सेंगोल मिला। लेकिन बाद में इसे प्रयागराज में आनंद भवन में रख दिया गया था। यह नेहरू परिवार का पैतृक निवास है। 1960 के दशक में इसे वहीं के संग्रहालय में शिफ़्ट कर दिया गया था।
बताते चलें कि 1947 में देश को आजादी मिलने की घोषणा कर दी गई थी, बस औपचारिकता पूरी होनी थी। इस बीच एक दिन आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने प्रधानमंत्री पद के लिये नामित हो चुके पंडित जवाहर लाल नेहरू से एक अजीब सा सवाल किया। ‘मिस्टर नेहरू, सत्ता हस्तांतरण के समय आप क्या चाहेंगे ? कोई खास प्रतीक या रिचुअल का पालन करेंगे? अगर आपने मन में कुछ हो तो हमें बताइये। नेहरू असमंजस में फंस गए, क्योंकि उन्होंने इसके बारे में पहले कुछ सोचा नहीं था। फिर भी उन्होंने माउंटबेटन को कहा कि मैं आपको बताता हूं।
नेहरू ने इसकी जिम्मेदारी राजगोपालचारी (राजाजी) को सौंपी। राजाजी ने कई धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहरों को देखा, पढ़ा और जाना ।
राजाजी ने राजदंड(सेंगोल) की सलाह दी। सभी वरिष्ट नेताओं और नेहरु जी के सामने राजाजी ने बताया कि आजादी से कई ईशा पूर्व भारतीय स्वर्णिम इतिहास में चोल साम्राज्य का अपना ही नाम रहा है। उस साम्राज्य में एक राजा से दूसरे राजा के हाथ में सत्ता जाती थी तो राजपुरोहित एक ‘राजदंड’ देकर उसका सम्पादन करते थे। एक तमिल पांडुलिपि में वो प्रतीक चिन्ह यानी ‘राजदंड’ का चित्रण उनको मिल गया। नेहरू ने राजेंद्र प्रसाद और अन्य नेताओं से विमर्श कर उसपर हामी भर दी।
इतिहासकारों को मिले दस्तावेजों के मुताबिक, नेहरू के समय ही इसे 1960 में इलाहाबाद संग्रहालय में भेज दिया गया और इस तरह सेन्गोल भूले बिसरे गीत की तरह भुला दिया गया। ये संग्रहालय के किसी कोने में धूल फांकने लगा। शायद ये आज भी किसी के संज्ञान में नही आता, अगर संसद का नया भवन नही बनता। जब संसद का नया भवन तैयार हो रहा था, तभी किसी विशेषज्ञ ने सेन्गोल का जिक्र प्रधानमंत्री से किया था। इसके बाद पीएम मोदी ने इसकी जांच करने के आदेश दिए थे।