केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि नए संसद भवन में सेंगोल को रखा जाएगा। उन्होंने इसका जिक्र करते हुए कहा कि आजादी के वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इसे अंग्रेजों से लिया था। नए संसद भवन के उद्घाटन के साथ ही ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित होगी। सेंगोल ने हमारे इतिहास में एक अहम भूमिका निभाई थी।
अमित शाह ने कहा कि 14 अगस्त 1947 को एक अनोखी घटना हुई थी। आजादी के समय जब पंडित नेहरू से पूछा गया कि सत्ता हस्तांतरण के लिए क्या प्रतीक होना चाहिए। उस वक्त नेहरू जी ने तत्काल कोई जवाब नहीं दिया और इसकी चर्चा के लिए सी गोपालाचारी से बात की। गोपालाचारी ने सेंगोल के बारे में सुझाया। तब पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सेंगोल को तमिलनाडु से मंगवा कर अंग्रेजों से इसे ग्रहण किया।
अमित शाह ने कहा कि सत्ता का हस्तांतरण महज हाथ मिलाना या किसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर करना नहीं है। इसे आधुनिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए स्थानीय परंपराओं से जुड़ा रहना चाहिए। उन्होंने कहा सेंगोल आज भी उसी भावना का प्रतिनिधित्व करता है जो जवाहरलाल नेहरू ने 14 अगस्त 1947 में महसूस की थी।
सेंगोल को लेकर अमित शाह ने कहा, “यह चोल साम्राज्य से जुड़ा हुआ है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि सेंगोल जिसको प्राप्त होता है उससे निष्पक्ष और न्यायपूर्ण शासन की उम्मीद की जाती है। तमिलनाडु के पुजारियों द्वारा इसका धार्मिक अनुष्ठान किया गया। आजादी के समय जब इसे नेहरू जी को सौंपा गया था, तब मीडिया ने इसे कवरेज दिया था। सेंगोल संस्कृत शब्द ‘संकु’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘शंख’. शंख हिंदू धर्म में एक पवित्र वस्तु है, और इसे अकसर संप्रभुता के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। इसे अब तक इलाहाबाद संग्रहालय में रखा गया है।”
अमित शाह ने आगे कहा, “1947 के बाद इसे भुला दिया गया। फिर 1971 में तमिल विद्वान ने इसका जिक्र किताब में किया। भारत सरकार ने भी साल 2021-22 में इसका जिक्र किया। 96 साल के तमिल विद्वान जो 1947 में उपस्थित थे वो भी उस दिन उपस्थित रहेंगे। यह सोने या चांदी से बना था, और इसे अक्सर कीमती पत्थरों से सजाया जाता था। सेंगोल राजदंड औपचारिक अवसरों पर सम्राट द्वारा ले जाया जाता था, और इसका उपयोग उनके अधिकार को दर्शाने के लिए किया जाता था।”