पीएम मोदी के फ्रांस दौरे के बीच फ्रांस में ही यूरोपियन संसद में मणिपुर हिंसा से जुड़ा एक प्रस्ताव पास कर दिया गया है। भारत ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है। विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि यह भारत के आंतिरक मामलों में दखल है और इसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
यूरोपीय संसद ने गुरुवार को भारत में मानवाधिकारों की स्थिति पर एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें मणिपुर में हाल की झड़पों का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। फ्रांस के स्ट्रासबर्ग में संसद ने भारतीय अधिकारियों से जातीय और धार्मिक हिंसा को रोकने और “सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा” के लिए कदम उठाने का आह्वान किया। इस मामले में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने भी पलटवार किया है। उन्होंने कहा कि यूरोपियन संसद मणिपुर के घटनाक्रम पर चर्चा करना और एक तथाकथित तात्कारिक प्रस्ताव को स्वीकार करना भारत के आंतरिक मामलों में दखलअंदाती है। भारत के आंतरिक मामलों में इस तरह का हस्तक्षेप अस्वीकार्य है और यह औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाता है।
आंतरिक मामलों में दखल बर्दाश्त नहीं: विदेश सचिव
विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने बुधवार को कहा था कि संबंधित यूरोपीय संघ के सांसदों से संपर्क किया जा रहा है और उन्हें यह स्पष्ट कर दिया गया है कि यह पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला है। मणिपुर में करीब दो महीने से खासकर कुकी और मेइतेई समुदायों के बीच हिंसक झड़पें हो रही हैं। क्वात्रा ने नई दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन में इस मामले पर एक सवाल का जवाब देते हुए कहा, ‘यह पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला है।
भारत ने EU के सांसदों के समक्ष विरोध जताया
उन्होंने कहा, ‘हमने संबंधित यूरोपीय संघ के सांसदों से संपर्क किया। लेकिन हमने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला है। ‘भारत, मणिपुर की स्थिति’ शीर्षक वाला यह प्रस्ताव यूरोपीय संसद में समाजवादियों और डेमोक्रेट्स के प्रगतिशील गठबंधन के समूह से जुड़े यूरोपीय सांसद (एमईपी) के सदस्य पियरे लारौतुरू ने की थी। एमईपी ने भारतीय अधिकारियों से हिंसा की जांच के लिए ‘स्वतंत्र जांच’ की अनुमति देने का आह्वान किया और सभी परस्पर विरोधी पक्षों से भड़काऊ बयान देना बंद करने, विश्वास को फिर से स्थापित करने और तनाव में मध्यस्थता करने के लिए निष्पक्ष भूमिका निभाने का आग्रह किया। बयान में कहा गया है, “संसद व्यापार सहित यूरोपीय संघ-भारत की साझेदारी के सभी क्षेत्रों में मानवाधिकारों को एकीकृत करने के अपने आह्वान को दोहराती है।