केंद्र सरकार ने गुरुवार को राज्यसभा में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (सेवा की नियुक्ति शर्तें और कार्यकाल) बिल राज्यसभा में पेश किया है। इस बिल को लेकर विवाद भी शुरू हो गया है। विपक्ष के तीन सदस्यीय पैनल ने इसे लेकर आपत्ति जताई है। इस विधेयक के मुताबिक, अब मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमेटी करेगी। इस कमेटी में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री भी सदस्य होंगे। नए विधेयक में CJI को शामिल नहीं किया गया है।
इसी बिल पर और विपक्ष द्वारा लगाए जा रहे आरोपों पर प्रदीप भंडारी ने अपना विश्लेषण जनता के सामने रखा है। प्रदीप भंडारी ने ट्वीट करते हुए कहा है को “इन नियुक्तियों के मामले में पीएम मोदी अब तक की तुलना में सबसे ज्यादा लोकतांत्रिक रहे हैं।”
Not one state government appoints the State Election Commissioner through a system of collegium. Neither they consult the LOP in their states, nor do they have any objective criteria. They should be the last ones to talk about democracy. We all saw how 'rigged' & bloody…
— Pradeep Bhandari(प्रदीप भंडारी)🇮🇳 (@pradip103) August 11, 2023
प्रदीप भंडारी ने ट्वीट करते हुए लिखा “कोई भी राज्य सरकार कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से राज्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति नहीं करती है। न तो वे अपने राज्यों में LOP से परामर्श करते हैं, न ही उनके पास कोई ऑब्जेक्टिव क्राइटेरिया है। उन्हे लोकतंत्र के बारे में बात नहीं करनी चाहिए। हम सभी ने देखा कि बंगाल में पंचायत चुनाव में कितनी ‘धांधली’ हुई थी और कितना खून बहा था। वास्तव में यूपीए ने अपने पूरे कार्यकाल में मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में LOP या न्यायपालिका से परामर्श नहीं किया।
उन्होंने आगे लिखा “पीएम नरेंद्र मोदी अब तक की सभी पिछली सरकारों की तुलना में अति लोकतांत्रिक हैं। क्योंकि उन्होंने CEC (मुख्य चुनाव आयुक्त) की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम में LOP को शामिल करने के लिए एक विधेयक का प्रस्ताव रखा है। असल में उन्होंने CEC की तरह ही इलेक्शन कमिश्नरों के रिमूवल सिस्टम को अपग्रेड कर एक अतिरिक्त कदम उठाया है। अब सरकार की पसंद से न तो EC (चुनाव आयुक्त) और न ही CEC (मुख्य चुनाव आयुक्त) को हटाया जा सकता है। इसके लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। इन्हे हटाना सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने के समान है। यहां तक कि CEC की नियुक्ति के लिए भी पहले के विपरीत एक विशिष्ट मानदंड है। पहले से अलग अब इस पद के लिए केवल सचिव स्तर के कर्मियों पर ही विचार किया जा सकता है जिनके पास चुनाव के प्रबंधन और संचालन में पहले का अनुभव और ज्ञान है।