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प्रदीप एनालिसिस:- सीबीआई सुशांत के न्याय के लिए पहला कदम, जारी रखनी होगी पूरे न्याय की लड़ाई

आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने यह साबित कर दिया की इस देश में सत्य ,न्याय और धर्म और लोगों की जनभावना और इस देश के नागरिक की जनशक्ति के ऊपर कोई भी ताकत और बल नहीं है। अगर देश की जनता यह ठान ले कि उसको सच्चाई की लड़ाई लड़नी है तो उसको कोई भी ताकत या सरकारी तंत्र नहीं रोक सकती है। हमने देखा है कि जिसने भी जनभावना का आदर नहीं किया है, जनभावना का तिरस्कार किया है। वह सरकारें सत्ता हमेशा जनता के सामने झुकी हैं। महाराष्ट्र के अंदर लड़ाई किसी पक्ष या विपक्ष के बीच नहीं थी। सुशांत सिंह राजपूत का केस मील का पत्थर साबित हुआ है, हर उस व्यक्ति के लिए जिसने न्याय की लड़ाई में सुशांत के परिवार का साथ दिया है। हमने बहुत कम बार देखा है कि जनभावना जागृत होती है और 50 से 55 दिन तक एक समान रूप से रहती है।

हमने इतिहास में देखा है कि लोग किसी मुद्दे को लेकर के आवाज उठाते हैं लेकिन कुछ समय बाद वह आवाज दब जाती है या फिर धीमी हो जाती है। लेकिन सुशांत मामले में यह आवाज दबी नहीं बल्कि समय के साथ और बढ़ती चली गई। चाहे यह 130 करोड़ देशवासियों का संकल्प हो, अर्नब गोस्वामी और रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क का बल हो, बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे की न्याय की लड़ाई हो ,यह हर उस फेसलेस नागरिक का संघर्ष हो जिसने सुशांत में खुद का संघर्ष देखा। इन सब में एक बात समान है कि जब भी सिस्टम में कुछ गलत होता है और देश के सारे लोग एक समान आवाज उठाएं, तो अन्याय का सिस्टम  हार जाता है। यह दुख की बात है कि पिछले 60 दिन में महाराष्ट्र सरकार ने जनभावना का आदर न करते हुए रिया चक्रवर्ती के बारे में सुशांत के पिता की पीड़ा को नजरअंदाज किया। जब सुशांत के पिता ने यह पीड़ा जताई कि सुशांत की मृत्यु एक आत्महत्या नहीं बल्कि उसकी हत्या की गई है ,तब महाराष्ट्र सरकार के संजय राउत ने उनका अनादर किया।

आज सुप्रीम कोर्ट ने यह भी बता दिया कि इस देश की न्याय प्रणाली मूल्यों के आधार पर चलती है।  यह हमारे देश के न्याय तंत्र की ताकत है कि अगर किसी राज्य की पुलिस अपने कर्तव्य को नहीं निभाती है ,सबूतों के साथ छेड़छाड़ करती हैं तो इस देश के न्यायपालिका की यह ताकत है कि वह उस केस को देश के सर्वोच्च एजेंसी को दे सकती है। आज लोग कह रहे हैं कि सीबीआई भी इस बात की गारंटी नहीं दे सकती कि वह न्याय दिलाएगी। लेकिन आज लोग यह मानते हैं कि सीबीआई मुंबई पुलिस से अधिक विश्वसनीय है। शायद ही इस देश में ऐसा कोई पहला मामला होगा जिसमें 60 दिन के अंदर कोई भी केस न दर्ज किया गया हो, 10 घंटे के अंदर मामले को सुसाइड घोषित कर दिया गया हो और आरोपी को एक तरीके से पीड़ित दिखाया गया हो। यह रिकॉर्ड मुंबई पुलिस के नाम दर्ज हुआ है। मुंबई पुलिस इतिहास में बहुत ही प्रोफेशनल रही है। लेकिन इस मामले में मुंबई पुलिस पर ऐसा कौन सा राजनीतिक दबाव था ,मुंबई पुलिस की ऐसी क्या विवशता रही कि उसने रिया चक्रवर्ती के केस को पर्सनल केस समझ लिया? सुशांत के न्याय की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है सीबीआई फॉर सुशांत अभी पहला कदम है। देश के नागरिकों को अभी और कदम लेने हैं। हमें हिम्मत को बनाए रखना है ,संयम नहीं खोना है। हां आज एक बड़ी जीत हुई है लेकिन पूरा इंसाफ अभी बाकी है।

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