राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) ने शुक्रवार को दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर अलगाववादी नेता यासीन मलिक को मौत की सजा देने का अनुरोध किया, जिसे आतंक वित्तपोषण मामले में निचली अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. एजेंसी की याचिका को न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति तलवंत सिंह की पीठ के समक्ष 29 मई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है.
यहां की एक निचली अदालत ने 24 मई, 2022 को जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के प्रमुख मलिक को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UPA) और भारतीय दंड संहिता के तहत विभिन्न अपराधों के लिए दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
मलिक की सजा बढ़ाने के लिए उच्च न्यायालय के समक्ष अपनी याचिका में एनआईए ने कहा कि अगर इस तरह के ‘‘खूंखार आतंकवादियों” को दोषी होने पर मृत्युदंड नहीं दिया जाता है, तो आतंकवादियों को मृत्युदंड से बचने का एक रास्ता मिल जाएगा.
एनआईए ने कहा कि उम्रकैद की सजा आतंकवादियों द्वारा किए गए अपराध के अनुरूप नहीं है, जबकि देश को सैनिकों की जान गंवानी पड़ी हो. मृत्युदंड के लिए एनआईए के अनुरोध को खारिज करते हुए निचली अदालत ने कहा था कि मलिक का उद्देश्य भारत से जम्मू-कश्मीर को बलपूर्वक अलग करना था.
निचली अदालत ने कहा था, ‘‘इन अपराधों का उद्देश्य भारत पर प्रहार करना और भारत संघ से जम्मू-कश्मीर को बलपूर्वक अलग करना था. अपराध अधिक गंभीर हो जाता है क्योंकि यह विदेशी शक्तियों और आतंकवादियों की सहायता से किया गया था. अपराध की गंभीरता इस तथ्य से और बढ़ जाती है कि यह एक कथित शांतिपूर्ण राजनीतिक आंदोलन की आड़ में किया गया था.”
अदालत ने कहा था कि मामला ‘‘दुर्लभतम” नहीं है, जिसमें मृत्युदंड की सजा दी जाए.