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त्रिपुरा की चुनावी तैयारी और राजनीति को करीब से देखने के बाद जन की बात सीईओ प्रदीप भंडारी ने डीडी नेशनल पर त्रिपुरा की राजनीति से जुड़े कुछ अहम सवालों के जवाब दिए

हाल ही में ‘जन की बात‘ के फाउंडर सीईओ प्रदीप भंडारी डीडी न्यूज़ के कार्यक्रम ‘आमने सामने‘ में बतौर युवा पत्रकार और त्रिपुरा में रिपोर्टिंग के बाद ओपिनियन पोल जारी करने वाले पत्रकारके रूप में शामिल हुए. कार्यक्रम के होस्ट वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव हैं और उन्होंने कार्यक्रम का मुद्दा ‘त्रिपुरा की राजनीति और आगामी विधानसभा चुनाव‘ बनाया।
एंकर- प्रदीप भंडारी आप त्रिपुरा के शहरों के साथ-साथ गांव में भी घूमे हो लेकिन मुझे ये याद आ रहा है कि त्रिपुरा में अपने सफर की शुरूआत के दौरान ही आपने ट्वीट किया था जन की बात टवीट्र हेंडल से कि सीपीआईएम के कुछ लोगो ने आप पर भी हमला किया था तो किस तरह का टेरर आप वहाॅं देख रहे है।
प्रदीप भंडारी- देखिए जैसे कि हम सब जर्नलस्टि है तो फ्रिडम आॅफ एक्सप्रेशन की काफी बात होती है। पहली बात जो मैं कहना चाहता हूॅं वो है कि अगर लोग सरकार के विरोध में कुछ कहते है तो वहाॅं को जो काडर होता है वो उसको सकारात्मक तरीके से नही लेता है। और वहाॅं पर अगर आप सरकार के खिलाफ जाते है तो वहाॅं पर जो गुंडे होते है वो लोगो को परेशान करते है अलग-अलग तरीकों से। मैं यहाॅं के पत्रकारों से कहूॅंगा कि अगर आप त्रिपुरा के अंदरूनी हिस्सों में जाएंगे तो आप देखेंगे कि फ्रीडम आॅफ एक्सप्रेशन वहाॅं पर नही है और एक मेंटल डर है वहाॅं कि जनता में। दूसरी चीज जो है वो ये है कि त्रिपुरा में सबसे बुनियादी मुद्दे है वो तीन है, पहला बेरोज़गारी, दूसरा भत्ता, तीसरा भेेदभाव। बेरोज़गारी क्यों? क्योकि त्रिपुरा एक राज्य जहाॅं सबसे ज्यादा बेरोज़गारी है। भत्ता इसलिए क्योकि अगर आप त्रिपुरा की कमयुनिस्ट पार्टी को सर्पोट नही करते हो आपको मनरेगा का वेलफेयर बेनिफिट नही दिया जाता है, कहा जाता है कि आप पार्टी रैली में नही आऐंगे तो आप आपको वेलफेयर बेनिफिट नही दिया जाएगा। तीसरा मुद्दा है भेदभाव का, भेदभाव इसलिए क्योकि अगर आप किसी और पार्टी को सर्पोट करतें है तो आपके साथ भेदभाव होना आम बात है। दरअसल, त्रिपुरा में आधे लेफट वोटर और आधे एंटी लेफट वोटर हैं। कांगे्रस ने 2014 के बाद से सीपीएम के साथ बंगाल में गठबंधन किया था जिसके कारण त्रिपुरा से कांग्रेस की काडर चला गया था और उसी खाली जगह को बीजेपी ने भर दिया है। तो अगर आप किसी दूसरी आॅपोज़िशन पार्टी को फेवर करतें है तो आपके साथ भेदभाव होता है बेनेफिट्स में। एक और अचरज वाली चीज जो मैं आपको बताना चाहूॅंगा, त्रिपुरा एक ऐसा राज्य है जहाॅं पर चीफ इलेक्शन आॅफिस और मुख्यमंत्री का आॅफिस एक ही बिल्डिंग में है और दोनो एक ही फलोर पर बैठते है और ये एक ऐसी चीज़ है जो त्रिपुरा के किसी भी जर्नलिस्ट ने पांइट नही कि है।
एंकर- प्रदीप मैं जानना चाहूॅंगा कि त्रिपुरा में जो बीजेपी कि एक उड़ान हो रही है क्योकि बड़े ही दिलचस्प आंकड़ें है 2013 के, मैं बताना चाहुॅंगा कि 2013 में बीजेपी को 60 में से 50 सीटों पर चुनाव लड़े जिसमें से 49 सीटों पर उसकी जमानत जब्त कर दी गई थी, करीब 1.5 फीसदी वोट बीजेपी को मिले थे जबकि 37 फीसदी वोट कांग्रेस को मिले थे। तो वहीं सीपीआईएम को 48 फीसदी वोट मिले थे। जहाॅं 2013 बीजेपी की 49 सीटों जमानत जब्त हो चुकी थी तो वहीं अब 2017 में बीजेपी कढ़ी टक्कर दे रहा है। तो क्या वजह लगती है आपको इस बदलाव की।
प्रदीप भंडारी- देखिए 34 हज़ार वोट मिले थे बीजेपी को 2013 में जिसके बाद 2014 से बीजेपी के प्रभारी सुनील देवधर ने त्रिपुरा में पिछले तीन से चार साल काम किया है, लोगो से बातचीत कि है, आरएसएस और संघ भी त्रिपुरा में काफी संस्कृतिक काम कर रहा है। हेमंतो बिसबास शर्मा पिछले काफी समय से नार्थईस्ट में काम कर रहे हैं। बीजेपी ने दरअसल 2014 के बाद से नार्थईस्ट को बड़ा फोकस बनाया है जिसमें त्रिपुरा में उनके प्रभारी डे-ईन डे-आउट लगे हुए है और उन्होने काडर सेटप किया है। जितने भी एंटी लेफट वोटर है उन्हें सुनील देवधर और हेमंतो बिसबास ने एकजोड़ करके रखा है। यहां मैं आपको एक बात और बताना चाहता हूॅं पिछली बार जब चुनाव हुए थे तब सीपीआईएम को करीब 53 से 54 फीसदी वोट मिले थे जबकि कांग्रेस 45 से 46 फीसदी वोट मिले थे तो सिर्फ 3 फीसदी वोट है जो अगर एंटी लेफट वोट बीजेपी को मिलते है तो कही ना कही बीजेपी सरकार बना सकती है। एक छोटी सी टिप्पणी यहाॅं मैं माणिक सरकार पर भी करना चाहुॅंगा कि अगर आप उनकी धर्मपत्नी कि पूंजी गिने तो तो पाऐंगे कि उनकी जमा-पूंजी काफी ज्यादा है और सीपीआईएम के बाकि नेताओं की भी पूंजी अच्छी खासी ही है। लेकिन जो एक गरीब सीएम की छवि बनाई गई है तो मैं ये कहना चाहुॅंगा कि सीएस के गरीब होने से ज्यादा बड़ा सवाल है कि क्या उन्होने जनता को अमीर बनाया है कि नहीं।
एंकर- प्रदीप संक्षेप में बताइए क्या लगता है कि क्या बदलाव हो सकता है क्योकि हमारे पेनलिस्ट सुरजीत कह रहे है कि इतना आसान नही है। प्रधानमंत्री जा रहे है तो बहुत उम्मीदों से जा रहे है, आपको क्या लगता है कि क्या बदलाव हो सकता है?
प्रदीप भंडारी- देखिए बदलाव होने के काफी ज्यादा उम्मीदे है क्योकि केसरी के उपर लाल के जीतने की ज्यादा उम्मीदें सभी को नज़र आ रही है। जो दो नारे वहां पर ज्यादा चल रहे है उसमें पहला है कि त्रिपुरा को मोदी पर विश्वास है वही सीपीआईएम का है कि शांति उन्नयन और उन्नति। तो कहीं ना कहीं शांति इसलिए क्योकि वहां मानसिक डर और उन्नति कि अगर बात करें तो बेरोजगारी है, मनरेगा का भत्ता नही मिलता है और कहीं ना कहीं लोगो को समझ में अब ये आ रहा है कि उनके पास एक आॅपशन है ग्रांउड पे जो उनको आगे बढ़ा सकता है और कहीं ना कहीं प्रधानमंत्री मोदी की वहां पर काफी अच्छी फाॅलोइंग है और बीजेपी कभी भी त्रिपुरा में आई नही है। तो कोई एंटी नही है और वहाॅं एक कहावत और भी है 25 साल तक हम एक ही दाल नही खा सकते है। पर देखना ये होगा कि वहाॅं पर कम्युनिस्ट काडर होने बाद कहीं ना कहीं ना जो व्यक्ति बीजेपी को वोट डालना चाहता है क्या वो उसे वोट डालेेगा। और एक छोटी सी लाइन आईपीएफटी के बारे में मैं बताना चाहूॅंगा ट्राबल्स की एक अलग राज्य की जो डिमांड रही है वो इसलिए है क्योकि जितनी भी आय है लोगो कि वो जमीन से ही जुड़ी हुई है इसलिए आईपीएफटी का वहां एलायंस है जो कोकबरोक भाषा में जाकर वहां लोेगो को समझा सके मुद्दों को। 
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