कोरोना वायरस को काबू करने के लिए दुनिया में अनेकों दवाइयों का इस्तेमाल हो रहा है। वायरस के शुरुआती दिनों में कोरोना पर काबू पाने में एचसीक्यू दवाई अहम भूमिका निभा रही थी। एचसीक्यू दवाई के उपयोग से पूरी दुनिया में कोरोना के मरीजों के जल्दी ठीक होने की खबरें आ रही थी। इसी बीच प्रभावशाली बिट्रिश मेडिकल पत्रिका लांसेट में 22 मई को एक लेख प्रकाशित किया गया। इसमें दावा किया गया था कि एसीक्यू के इस्तेमाल से कोरोना वायरस के रोगियों में मृत्यु के खतरे को बढ़ा देता है। जिसके बाद दुनिया में कोरोना वायरस से निपटने के लिए हाइड्रोऑक्सी क्लोरोक्विन ( एसीक्यू ) पर हो रहे अध्ययनों पर रोक लगा दी।
आपको यह जानना जरूरी है पत्रिका में यह लेख चार लेखकों के द्वारा लिखा गया था। इनमें डॉ मनदीप आर मेहरा, डॉ फ्रैंक रस्कितज़का, डॉ अमित न पटेल, डॉ सपन देसाई शामिल थे। जिसमें से डॉक्टर सपन देसाई को छोड़कर तीनों लेखकों ने अपना लेख वापस ले लिया है। तीनों लोगों का कहना है कि डाटा प्रदान करने वाली कंपनी सर्जीफेयर स्वतंत्र समीक्षा के लिए डाटा हस्तांतरित नहीं कर रही है। ऐसे में वे प्राथमिक डाटा स्रोतों की सत्यता के लिए जिम्मेदारी नहीं ले सकते। आपको यह जानना जरूरी है कि चौथी लेखक डॉक्टर सपन देसाई ही डाटा उपलब्ध कराने वाली कंपनी सर्जीफेयर के सीईओ है। कंपनी ने वेबसाइट पर बताया कि लांसेट में प्रकाशित में डाटा इलेक्ट्रॉनिक हैल्थ रेकॉर्ड्स से लिया गया है। कंपनी ने हाइड्रोऑक्सी क्लोरोक्विन के विश्लेषण में हमने हॉस्पिटल में भर्ती कोरोना वायरस से पीड़ित मरीजों का विश्लेषण किया है। इसमें हमने किसी भी प्रकार से आंकड़ों से कोई भी छेड़छाड़ नहीं की है।
यहां पर यह जानना जरूरी है कि कंपनी के द्वारा दिए गए आंकड़ों पर एक अन्य ब्रिटिश पत्रिका न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडसिन ने भी लेख प्रकाशित किया था। इन्हीं कारणों से वह भी वापस ले लिया गया।
कोरोना वायरस से निपटने के लिए हाईड्रोऑक्सी क्लोरोक्विन दवा की वकालत अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी कर चुके है। वहीं भारत की तरफ से आईसीएमआर ने इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद होने के बाद भी हाईड्रोऑक्सी क्लोरोक्विन दवाई पर अपने अध्ययन को जारी रखा।