अमन वर्मा (जन की बात)
एल.ए.सी (LAC) पर विवाद अब तूल पकड़ता दिख रहा है, भारत और चीन दोनों देश अपनी सीमाओं पर अपनी शक्ति प्रदर्शित कर रहे हैं। बीते 6 जून को दोनों देशों के लेफ्ट.जनरल की मीटिंग हुई। वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत और चीन के बीच तनाव जारी है, आज हम समझेंगे की दोनों देशों के बीच इस लाइन का क्या अर्थ है, और इस पर क्या है असहमति:
वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) क्या है?
LAC वो रेखा है जो भारतीय-नियंत्रित क्षेत्र को चीनी-नियंत्रित क्षेत्र से अलग करता है। भारत LAC को 3,488 किमी लंबा मानता है, जबकि चीनी इसे लगभग 2,000 किमी मानते हैं। यह तीन क्षेत्रों में विभाजित है: पूर्वी क्षेत्र जो अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम से हो कर गुजरता है, मध्य क्षेत्र जो उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश से हो कर गुजरता है, और पश्चिमी क्षेत्र जो लद्दाख से हो कर जाती है।
LAC को लेकर दोनों देशों के बीच असहमति क्या है?
दोनों देशों के बीच असहमति 1959 के उन 2 पत्रों से शुरू हुई जिसे तब के चीनी प्रधानमंत्री झोउ एनलै (Jhou Enlai) ने भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को, पश्चिमी क्षेत्र जहां से वास्तविक नियंत्रण रेखा गुजरती है। इस पत्र में उन्होंने पहले उल्लेख किया की LAC में “पूर्व में तथाकथित मैकमोहन रेखा और पश्चिम में वास्तविक नियंत्रण का प्रयोग करने वाली रेखा” शामिल थी।
शिवशंकर मेनन ने इस विवाद को अपनी पुस्तक ‘इनसाइड थे मेकिंग ऑफ इंडियन फॉरेन पालिसी’ में कुछ इस तरह समझाया है: चीनी LAC ने नक्शे को ‘मैप नॉट तो स्केल’ कहते हैं।
ये रेखाएं लद्दाख में विवादास्पद क्यों हैं?
ब्रिटिश शाशन ने अपने सभी संधियों को स्वतंत्र भारत को हस्तांतरित किया था, और जब मैकमोहन लाइन पर शिमला समझौते पर ब्रिटिश भारत द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे, तब जम्मू कश्मीर की रियासत लद्दाख प्रांत में ‘अक्साई चिन’ ब्रिटिश भारत का हिस्सा नहीं था, हालांकि यह ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा था। जिसके कारण पूर्वी सीमा को 1914 में अच्छी तरह से परिभाषित किया गया था, मगर पश्चिम में लद्दाख को, परिभाषित नहीं किया गया था।
ए.जी नूरानी अपनी किताब ‘भारत-चीन सीमा समस्या 1846-1947’ में लिखते हैं कि सरदार वल्लभभाई पटेल के मंत्रालय ने भारतीय राज्यों पर दो श्वेत पत्र प्रकाशित किए थे। पहली बार, जुलाई 1948 में, दो नक्शे प्रकाशित हुए, एक नक्शे में पश्चिमी क्षेत्र में कोई सीमा नहीं थी, केवल एक आंशिक रंग की मदद से सीमाओं को दिखाया गया था, जबकि दूसरे नक्शे में जम्मू कश्मीर के पूरे राज्य को पीले रंग में रंग दिया था, लेकिन नक्शे मे “सीमा अपरिभाषित” का उल्लेख किया गया था। दूसरा श्वेत पत्र फरवरी 1950 में भारत के गणतंत्र बनने के बाद प्रकाशित हुआ था, जहाँ मानचित्र में फिर से सीमाएँ थीं जो अपरिभाषित थीं।
जुलाई 1954 में, नेहरू ने एक निर्देश जारी किया जिसमे उन्होंने कहा कि “इस सीमा से जुड़े हमारे सभी पुराने मानचित्रों की सावधानीपूर्वक जाँच की जानी चाहिए। नए नक्शे हमारे उत्तरी और उत्तर पूर्वी सीमांत को किसी भी ‘लाइन’ के संदर्भ में प्रदर्शित किए बिना मुद्रित किए जाने चाहिए। नए मानचित्रों को विदेशों में हमारे दूतावासों को भी भेजा जाना चाहिए और आम तौर पर जनता के लिए पेश किया जाना चाहिए और हमारे स्कूलों, कॉलेजों आदि में उपयोग किया जाना चाहिए। यही मानचित्र, आधिकारिक तौर पर आज तक इस्तेमाल किया जाता है, यही नक्शे बाद में चीन के साथ व्यवहार का आधार बने, जो 1962 के युद्ध के लिए अग्रणी था।
चीन की LAC और पाकिस्तान की LOC में क्या अंतर है?
कश्मीर युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1948 की संघर्ष विराम रेखा से एलओसी का उदय हुआ। दोनों देशों के बीच शिमला समझौते के बाद 1972 में इसे LoC के रूप में नामित किया गया था। यह दोनों सेनाओं के DGMOs द्वारा हस्ताक्षरित एक मानचित्र पर चित्रित किया गया है और इसमें कानूनी समझौते की अंतर्राष्ट्रीय पवित्रता है। एलएसी, इसके विपरीत, केवल एक अवधारणा है – यह दोनों देशों द्वारा सहमति नहीं है, न तो नक्शे पर चित्रित किया गया है और न ही जमीन पर सीमांकित किया गया है।