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जेएनयू में टुकड़े-टुकड़े नारे लगाने की आज़ादी है लेकिन सरस्वती सिविलाइजेशन की बात करना गुनाह? 

यूनिवर्सिटी कैटेगरी की रैंकिंग में जेएनयू ने एक बार फिर दूसरा स्थान प्राप्त किया है। जेएनयू लगातार एनआईआरएफ की रैंकिंग में अच्छा प्रदर्शन करता है और टॉप 3 कॉलेज में रहता है। लेकिन जेएनयू हमेशा सुर्खियों में भी रहता है छात्रों के प्रोटेस्ट को लेकर के और सिर्फ कुछ वामपंथी छात्रों की वजह से ही जेएनयू को बदनामी सहनी पड़ती है। नहीं तो हर वर्ष जेएनयू शैक्षणिक व्यवस्था के आधार पर देश में टॉप यूनिवर्सिटी के रूप में उभरकर सामने आता है। लेकिन जेएनयू में इसी बीच एक बार फिर वामपंथी छात्र और छात्र नेताओं ने फ्रीडम आफ एक्सप्रेशन का गला घोटा है। जेएनयू में सरस्वती सिविलाइजेशन पर जीडी बक्शी के लेक्चर को लेकर वहां के वामपंथी छात्र नेता विरोध कर रहें है।

क्या है सरस्वती सिविलाइजेशन?

आपको बता दें कि 1 साल पहले ही जनरल जीडी बक ने सरस्वती सिविलाइजेशन नामक एक किताब का विमोचन किया था इस किताब में सरस्वती नदी पर विस्तार से अध्ययन प्रस्तुत किया। इसके साथ ही जनरल जीडी बक्शी ने उपनिवेश काल के इतिहासकारों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था।  लेकिन अब इस किताब पर जनरल जीडी बख्शी के लेक्चर का जेएनयू में विरोध हो रहा है। ताकि इस पुस्तक का विमोचन जेएनयू में ना हो सके और इसका विरोध सिर्फ वामपंथी छात्र और उनके छात्र नेता कर रहे हैं।

सवाल ये उठता है कि क्या जेएनयू में भारत तेरे टुकड़े होंगे कहने की आजादी है। भारत के खिलाफ बोलने की आजादी है। लेकिन वहां पर कोई व्यक्ति सरस्वती सिविलाइजेशन पर किताब का विमोचन नहीं कर सकता। क्या यही है वहां के वामपंथी छात्रों का फ्रीडम आफ एक्सप्रेशन? आपको बता दें कि जेएनयू में उमर खालिद जैसे लोग वहां के वाइस चांसलर के खिलाफ भड़काऊ भाषण दे सकते हैं। वहां के वामपंथी छात्र नेता पढ़ाई ना कर कर सभी उस गतिविधियों में शामिल होते हैं जो कि शिक्षा से अलग है। और तो और शरजील इमाम जिसने देश से असम को काटने की बात कही थी उसको भी जेएनयू में बोलने की आजादी है। लेकिन वहां पर सरस्वती सिविलाइजेशन की बात नहीं हो सकती।

जेएनयू रैंकिंग में टॉप?

सवाल ये उठता है कि जब जेएनयू में ऐसी गतिविधियां होती है तो जेएनयू बार-बार एचआरडी मंत्रालय की रैंकिंग में टॉप पर क्यों आता है? दरअसल कॉलेज की रैंकिंग कुछ मापदंडों के आधार पर तय होती है। इसमें प्रमुख है छात्र और शिक्षक का अनुपात, शिक्षकों की शैक्षणिक योग्यता, संस्थान की वित्तीय स्थिति और उनकी उपयोगिता, रिसर्च पेपर का प्रकाशन, प्लेसमेंट पैकेज और आर्थिक रूप से गरीब और दिव्यांग छात्रों के लिए प्रशासन की सुविधा।

इन सब मापदंडों के आधार पर ही किसी कॉलेज की रैंकिंग तय होती है और जेएनयू इन सब स्थानों में टॉप पर आता है। इससे जाहिर होता है कि सरकार ने जेएनयू को कभी भी पैसे की कमी नहीं होने दी। यह उनके लिए भी जवाब है जो वर्तमान केन्द्र सरकार पर जेएनयू विरोधी होने का आरोप लगाते हैं।

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