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भारत के खिलाफ झूठ परोसता विदेशी मीडिया, साक्ष्य दिखाते है अलग ही तस्वीर

विदेशी मीडिया शुरू से ही भारत की एक नकारात्मक छवि बनाने के लिए मशहूर है लेकिन वर्तमान में उपलब्ध साक्ष्य विदेशी मीडिया द्वारा कही गई मनगढ़ंत कहानियों से एक अलग ही तस्वीर पेश करते है।

जब दुर्भाग्यपूर्ण 2012 की दिल्ली में बलात्कार की घटना हुई उसके बाद से विदेशी मीडिया ने भारत को रेप कैपिटल ऑफ द वर्ल्ड बताया। लेकिन विदेशी मीडिया की आलसी पत्रकारिता और लेखों के माध्यम से सोशल मीडिया और मीडिया में एक एजेंडा सेट कर दिया, जबकि कुछ विपक्षी नेता भी इस गलत तथ्य को बार बार दोहरा रहे है।

“दुनिया अभी भी केवल एक एजेंडे को लेकर जुड़ी हुई है “शेम ऑन द इंडियन मेल” जो उनके परंपरागत सोच में फिट बैठता है।

यह सब बिल्कुल ठीक चल रहा है लेकिन इसमें एक खामी है कि इसमें से कुछ भी सत्य नहीं है।”

मोहन दास पाई और अनुराग सक्सेना, बोर्ड ऑफ एडवाइजर्स, DataReveals.org

यदि यहां पर हम यौन शोषण पर आंकड़ों की तुलना करते है तो भारत में यह दर प्रति लाख पर 0.52 है जबकि विकसित देशों में यौन शोषण के मामलों की दर 7.93 से लेकर 17.92 प्रति लाख तक है। इसमें से 6 देशों में यौन शोषण की दर 50 प्रति लाख से अधिक है।

डाटा रिवेल्स के आधिकारिक आंकड़ों की बात करें तो रेप रेट टेबल में भारत का स्थान 119 देशों में से 84 है। यह आंकड़े भारत को विकसित देशों की तुलना में कहीं अधिक सुरक्षित बताते है। यदि कहीं भी एक रेप भी होता है तो उसकी निंदा जरूर की जानी चाहिए, और एक रेप का केस भी समाज के ऊपर एक दाग़ छोड़ जाता है और दोषी को बिल्कुल भी छोड़ना नहीं चाहिए। लेकिन भारत को रेप कैपिटल ऑफ द वर्ल्ड बता कर उन सभी देशों के विक्टिम्स से निगाहें उठाने की कोशिश की जा रही है जो हमारे देश से भी बुरी स्थिति झेल रहे हैं।

यदि आंकड़ों के हिसाब से बड़े परिपेक्ष को देखा जाए तो भारत विकसित देशों के मुकाबले में महिला सुरक्षा के मामले में बेहतर स्थित में है।

यदि अब हम हत्या के मामलों के आधार पर देखते है तो भारत में प्रति लाख लोगों पर 1.18 मामले आते है। अमेरिका और यूके हमसे बेहतर स्थिति में है वहां क्रमशः प्रति लाख लोगों पर 0.38 और 0.12 हत्या के मामले आते है। जबकि साउथ अफ्रीका, न्यूजीलैंड और स्वीडन में स्थिति भारत से कहीं अधिक खराब है यहां प्रति लाख लोगों पर मौतों के आंकड़े क्रमशः 6.27, 2.74 और 1.68 मामले आते है। यह सब आंकड़े भारत की उस छवि से बिल्कुल भी मेल नहीं खाते है जो पश्चिमी मीडिया भारत के प्रति पेश करता है कि भारत बिल्कुल असुरक्षित देश है।

यदि लूट और चोरी के मामलों की बात करें, तो इसमें भी भारत की स्थिति काफी विकसित देशों से बेहतर है ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देश में लूट और चोरी के मामले 161.21 आते है जबकि अमेरिका में इनकी संख्या प्रति लाख पर 2.02 है जबकि भारत में चोरी और डकैती के मामले प्रति लाख पर 2.98 ही आते है।

वहीं दूसरी तरफ यदि हम कार्बन उत्सर्जन के आंकड़ों की बात करें, तो कई बार बड़े-बड़े पर्यावरणविद प्रदूषण फैलाने के लिए भारत जैसे देशों को दोषी ठहराते हैं जबकि अमेरिका के राष्ट्रपति भी कई बार बड़े मंचों से भारत के खिलाफ बयान भी देते रहे है। जबकि आंकड़े कुछ अलग ही कहानी कहते है भारत में प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन केवल 1.8 टन है। जबकि विश्व में प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन का वैश्विक औसत कही अधिक 4.7 टन है। वहीं विकसित देशों जैसे अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया का प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन क्रमशः 16.2 और 16.9 है जो साफ दिखाता है कि भारत दुनिया के बड़े देशों के मुकाबले कहीं अधिक कम प्रदूषण करता है।

भारत में प्रति व्यक्ति वहान की की तुलना अन्य देशों से करें, भारत में केवल हजार में से 18 लोगों के पास गाड़ियां उपलब्ध है जबकि अमेरिका में यह आंकड़ा 797 और यूरोप में 602 है। जो दुनिया को बताने के लिए काफी है कि भारत विकसित देशों की तुलना में कहीं कम प्रदूषण से करता है।

सलाम बॉम्बे और स्लमडॉग मिलेनियर जैसी पिक्चर भारत की विश्व में ऐसी छवि बनाती है जैसे कि किडनैपिंग भारत में एक आम बात है। जबकि हकीकत इससे परे है। यदि न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से भारत के क्राइम रेट की तुलना करेंगे तो न्यूजीलैंड में क्राइम रेट 22.17 और ऑस्ट्रेलिया में 16.58 है जबकि भारत में क्राइम रेट प्रति लाख 0.5 है। जब की छवि ऐसी बनी हुई है कि न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया दुनिया के सबसे सुरक्षित देशों में से एक है। और आंकड़े यह दिखाते हैं कि भारत न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के अपेक्षा कहीं अधिक सुरक्षित है।

वेस्टर्न मीडिया में भारत की छवि नकारात्मक ही दिखाई जाती है। न्यू यॉर्क टाइम्स का रेसिज्म तब सामने आया जब अखबार ने भारत के मंगल मिशन के खिलाफ कार्टून छापा था। जबकि भारत के मंगल मिशन की लागत केवल($73 मिलियन डॉलर और अमेरिका के मंगल मिशन की लागत $671 मिलियन डॉलर थी।)

यह हमारी नैतिक और व्यक्तिगत जिम्मेदारी है कि हम समाज को और दुनिया को इन झूठी खबरें और एजेंडा ग्रहित पत्रकारिता से निजात दिलाए। सूचना और प्रौद्योगिकी के दौर में हमारे पास आज ऐसे संसाधन है जिसका हम उपयोग करके हम इस एजेंडा ग्रहित पत्रकारिता से छुटकारा पा सकते है।

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Sombir Sharma
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Sombir Sharma - Journalist

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