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राष्ट्र निर्माण में शिक्षा की ठोस बुनियाद एवं सम्यक आर्थिक वैज्ञानिक नीति की आवश्यकता

हर राष्ट्र के विकास के लिए शिक्षा का अति महत्वपूर्ण किरदार होता है जिस राष्ट्र में शिक्षा, संस्कृति जितनी गहरी और समृद्ध हो वह राष्ट्र उतना ही विकसित, पुष्पित , पल्लवित होता हैं । इसके साथ आर्थिक और वैज्ञानिक सोच भी अत्यंत विचारणीय है।

हर देश में राष्ट्र के प्रति और राष्ट्रहित के प्रति चिंतन करने वालों का समूह होना चाहिए, जो प्रजातांत्रिक लोकतांत्रिक तथा राष्ट्रहित के विचारों और विकास के मूल मंत्र को नई उर्जा ताजा हवा और आगे बढने की सच्चाई को इंगित कर सके ‘बिना संस्कृति , संस्कार और वैचारिक क्षमता के कोई भी राष्ट्र वैश्विक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय प्रगति करने की सोच भी नहीं सकता’ वैचारिक और सैद्धांतिक अंतरधारा , सिद्धांतो को कुचला या नष्ट नहीं किया जा सकता। व्यक्तिगत वैचारिक अभिव्यक्ति भारत के संदर्भ में गणतंत्र की मूल आत्मा है।

विचार और सिद्धांत व्यक्ति की अंतःप्रज्ञा होती है । यह सिद्घांत तथा अंतः विचारधारा जनमानस तक पहुंचने से बाधित किया जाए तो अंतरात्मा को प्रभावित करती है। इसके गहरे प्रभाव से व्यक्ति वह सब कर सकता है , जो बिना मार्गदर्शन के व्यक्ति नहीं कर सकता है। प्राचीन काल से अब तक मनीषियों के वैचारिक सिद्धांत और विचारधारा सदैव समाज के दिग्दर्शक मार्गदर्शक रहे है। इसकी भूमिका सदैव महत्वपूर्ण रही है। यदि यही सिद्धांत और अंतः प्रज्ञा जनमानस आत्मसात कर लेता है, तो उसका प्रभाव एक जन आंदोलन का रूप ले लेता है। और यहीं से युग परिवर्तन की लहर उत्पादित होती है। प्राचीन यूनान में एक बहुत ही कुरूप किंतु विद्वान व्यक्ति रहते थे, उनके विचारों में मौलिकता, नयापन, जनजागृति की अद्भूत क्षमता थी । उनकी विद्धता के कारण आम जनमानस होने राजा से ज्यादा महत्व ओर बुद्धिमान मानते थे।

राजकीय तानाशाही के चलते उनके विचारों के कारण उनको मृत्यूदंड दे दिया गया। जहर का प्याला पीने के बाद भी विद्वान , चिंतक सुकरात अमर हो गए , उनकी विचारधारा आज भी जीवित है, एवं लोग उसे अपनाकर अपना जीवन सुधारने में इसका उपयोग करते है।

अब्राहम लिंकन ने अमेरिका स्वतंत्रता के बाद दास प्रथा के बारे कहा था कि दास भी मनुष्य है, उन्हें भी उतना ही जीने का अधिकार है जितना स्वामी को है। अब्राहम लिंकन के आंदोलनकारी विचार से तत्कालीन समय में अमेरिका मे लोग घबरा गए थे, और उनकी हत्या कर दी गई थी। पर अब्राहम लिंकन के विचारों ने दास प्रथा के उन्मूलन की अंतर आत्मा को जागृत कर दिया था, और जनमानस ने अपने अधिकारों के लिए लडते हुए दास प्रथा से मुक्ति पाई थी।

स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि हम जो सोचते है वही बन जाते हैं। विचार एवं सिद्धांत ही व्यक्ति का निर्माण करता है। वही दुष्ट होने या महान होने का निर्णायक है। और बिना विचार सिद्धांतों के व्यक्त व्यक्ति का अस्तित्व ही नहीं । उनके विचार आज भी कालीन प्रासंगिक है, जितने उनके जीवित रहते हुए थे। आज हमारे बीच विवेकानंद जी सशरीर मौजूद नहीं है, पर उनके विचारों की महत्ता कायम है। भौतिक शरीर के नष्ट हो जाने से और भौतिक विचार तथा सिद्धांत उतनी ही तीव्रता रखते है, वेग रखते है, जो एक समाज में परिवर्तन ला सकती है। विचारों की यह अमरता तथा तीव्रता किसी तानाशाह के लिए इतनी खतरनाक है , जितनी की सुप्त शेर की गुफा में रहना ।

जनता के मध्य शुद्घ विचारधारा के जागृत होने पर क्रांति लाई जा सकती है। फिर चाहे वह फ्रांस के वर्साव के महल का विध्वंस हो अथवा भारत की स्वतंत्रता हेतू वृहद आंदोलन हो। व्यक्ति या व्यक्तिओं के दबाब को दबाने के बाद विचारों की पीडिता ने जनमानस को एक गजरते हुए सिंह में तब्दील कर दिया था। यह शाश्वत सत्य है कि व्यक्ति को जरूर आप दबा दे सकते है, पर विचारधारा सिद्धांत अजर अमर होते हैं, और वही युग निर्माण में अपनी महती भूमिका निभाते है। विचारो के संदर्भ मे कहा जाता है कि एक व्यक्ति का विचार तब तक उस व्यक्ति के पास है, जब तक वह अकेला है किंतु जैसे ही विचारधारा एवं सिद्धांत का प्रचार-प्रसार होता है, तो व्यक्ति अकेला ना रह कर उस जैसे हजारों लाखों लोग उसके साथ हो जाते हैं। तब वह अकेला नहीं रह जाता ।वह अपने विचारों के माध्यम से जन सामान्य को प्रभावित कर लोगों को उस लडाई में शामिल कर लेता है, जिस लडाई को कभी अकेले नही लड सकता था। विचारों सिद्धांतों की तीव्रता आवेश तथा सघनता किसी भी क्रांतिकारी लक्ष्य की प्राप्ति में एक बडा साधक हो सकता है। विचार व सिद्धांत एक से दूसरे व्यक्ति तक स्थानांतरित होते रहते हैं ।

विचारों को संघनता प्राप्त होती है । ताकि सत्ता के दमन के समय वैचारिक अमरता स्थाई बनी रहे। चीन उत्तर कोरिया जैसे राष्ट्रों में विचारों के इस स्वतंत्र के प्रवाह को बाधित नियंत्रित कर दिया गया। अभिव्यक्ति के तमाम माध्यमों को प्रतिबंधित कर दमन चक्र चलाया गया। वहां विचार और सिद्धांत विद्वान व्यक्ति तक ही सीमित रहे उसका फैलाव या विस्तार नही हो पाया। जो मानव समाज तथा मानव अधिकारों की संवेदना तथा धाराओं का उल्लघंन भी हैं ।

किसी स्वस्थ स्वतंत्र राष्ट्र के लिए व्यक्ति समाज और राष्ट्र के विचारों की स्वतंत्रता नवीनता तथा उत्कृष्ता अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि विचारधारा और सिद्धांतो को रोक पाना किसी भी सत्ता या निरंकुश राजा के नियंत्रण में नहीं होता है। विचारों और सिद्धांत अनादि काल से गतिशील है तथा अनंत तक जगत तक गतिशील रहेगें, और उसका प्रतिपादक और अनुशीलन कर्ता विचारों के साथ अमर हो जाते हैं ।

० लेखक के सभी विचार व्यक्तिगत है ।

 

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Abhishek Kumar
Abhishek Kumar
Abhishek kumar Has 4 Year+ experience in journalism Field. Visit his Twitter account @abhishekkumrr

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