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1954 से असंसदीय भाषा को संसद की कार्यप्रणाली से हटाया जाता रहा है, जानें 

गुरुवार सुबह लोकसभा सचिवालय की ओर से एक बुकलेट जारी की गई, जिसमें कुछ असंसदीय शब्दों को हटा दिया गया। विपक्ष ने दावा किया कि मोदी सरकार ने सरकार की आलोचना करने वाले शब्दों को संसद में बैन कर दिया। इसके बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने खुद स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि किसी भी शब्द को बैन नहीं किया गया है बल्कि कुछ असंसदीय शब्दों को हटाया गया है।

वहीं इस पूरे मुद्दे पर लोकसभा सचिवालय से जुड़े सूत्रों ने समाचार एजेंसी एएनआई को बताया कि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है बल्कि 1954 से ही असंसदीय भाषाओं को समय-समय पर हटाया जाता रहा है। 3 मार्च 2011 को निचले सदन लोकसभा से “बेमानी” शब्द को हटा दिया गया था। वहीं 17 अगस्त 2011 को ऊपरी सदन राज्यसभा से “बेईमान” शब्द को असंसदीय करार देते हुए हटा दिया गया था।

21 मार्च 2012 को संसद से असंसदीय शब्द के रूप में “शर्मनाक” शब्द को भी हटा दिया गया था। 20 मार्च 2012 को राज्यसभा से “चीटिंग” यानी “धोखा देना” शब्द भी संसदीय भाषा से हटा दिया गया था। इससे पहले 1966 में “भ्रष्ट” और “भ्रष्ट आदमी” शब्द को असंसदीय करार देते हुए संसद की कार्यप्रणाली से हटा दिया गया था।

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JVC SREERAM
JVC SREERAM
This article is penned by JVC Sreeram who is a Political Strategist, Motivational Speaker, Author & Psephologist and Media Consultant for Jan Ki Baat.

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