उत्तराखंड के जोशीमठ में जमीन धंसने की घटनाओं से हाहाकार मचा हुआ है, प्रशासन और राज्य सरकार हाई अलर्ट पर है, जगह-जगह जमीन फट रही है, घरों-होटलों में बड़ी-बड़ी दरारें आ रही हैं, ऐसे हालात अब जोशीमठ ही नहीं कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग, नैनीताल, चमोली, उत्तरकाशी में भी हो गए हैं, अभी तक ऐसा लग रहा था कि जमीन धंसने की शुरुआत जोशीमठ से हुई है लेकिन अब दावा किया जा रहा है कि भू-धंसाव की घटनाओं की शुरुआत महीनों से पहले कहीं और से हुई थी।
सूत्रों की माने तो जोशीमठ से करीब 8 किलोमीटर ऊपर जाने पर सात हजार फुट की ऊंचाई पर सुनील नाम का गांव है, सबसे पहले इसी गांव में जमीन धंसने की शुरुआत हुई थी । जोशीमठ की घटनाओं से महीनों पहले यहां के घरों की दीवारों में दरारें दिखी गई थी, यहां पिछले 8 दिनों में ये दरारें इतनी बड़ी हो गईं कि घर के घर टूट रहे हैं।
रिपोर्ट में चौंकाने वाली बात यह भी कही गई है कि न सिर्फ यहां की जमीन कमजोर है, बल्कि इसके नीचे से हिमालय की उत्पत्ति के समय अस्तिस्त्व में आया ऐतिहासिक फाल्ट मेन सेंट्रल थ्रस्ट भी गुजर रहा है, जिसके कारण यहां भूगर्भीय हलचल होती रही है और पहले से कमजोर सतह को इससे अधिक नुकसान होने का अनुमान है।
हाल में सरकार को सौंपी गई इस रिपोर्ट में जोशीमठ की जमीन के पत्थरों की प्रकृति भी बताई गई है। इसमें कहा गया है कि ऐतिहासिक फाल्ट लाइन के दोनों तरफ के क्षेत्र हेलंग फार्मेशन और गढ़वाल ग्रुप्स में पत्थरों की प्रकृति समान है। ये पत्थर क्वार्टजाइट और मार्बल हैं, जिनकी मजबूती बेहद कम होती है। इन पत्थरों में पानी के साथ घुलने की प्रवृत्ति भी देखने को मिलती है। जोशीमठ की जमीन का भीतरी आकलन किया जाए तो ऐतिहासिक फाल्ट लाइन एमसीटी के ऊपर मार्बल पत्थरों के साथ गीले मलबे की मोटी परत है और फिर इसके ऊपर जोशीमठ शहर बसा है।
जोशीमठ मामले में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी । इस याचिका में जोशीमठ संकट को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग की गई थी, साथ ही ये भी कहा गया है कि उत्तराखंड के लोगों को तत्काल वित्तीय सहायता और मुआवज़ा दिया जाना चाहिए , लेकीन आज सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इंकार कर दीया और जोशीमठ मामले में हाईकोर्ट को सुनवाई करने का आदेश सुना दीया ।