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28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन; सावरकर के जन्म दिन पर उद्घाटन महज संयोग या कुछ और, जानिए

28 मई 1873 को सावरकर का जन्म हुआ था. इसलिए सावरकर के जन्म दिन के अवसर पर नए संसद का उद्घाटन महज संयोग कैसे हो सकता है. बीजेपी वैसे भी सावरकर और उनके राष्ट्रवाद में गहरी आस्था रखती है. ये अटल, आडवाणी से लेकर बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं के भाषण में अक्सर सुनने को मिलता रहा है.

बीजेपी बीडी सावरकर को स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास का वो किरदार मानती है, जिनके बड़े त्याग और वलिदान के बावजूद उन्हें उनका उचित सम्मान नसीब नहीं हो सका है. महात्मा गांधी की हत्या के आरोप में वीर सावरकर कोर्ट से बरी जरूर हुए. लेकिन उनके नाम पर कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने लगातार कालिख पोती है. कहा जा रहा है कि नए संसद के उद्घाटन के लिए 28 मई की तारीख का चुनाव सावरकर के नाम को कलंकित करने वालों के लिए करारा जवाब है.

जाहिर है वीर सावरकर के जन्म दिन के अवसर पर नए संसद का उद्घाटन कर बीजेपी अपने हीरो के सम्मान में आस्था प्रकट कर रही है, जो कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी पार्टियों के लिए करारा जवाब है. इस क्रम में बीजेपी शिवसेना (उद्धव) को भी घेरने का प्रयास कर रही है जो महाअघाड़ी में कांग्रेस के साथ महाराष्ट्र में गठबंधन में है.

भारत जोड़ो यात्रा के दरमियान भी सावरकर के खिलाफ बयानबाजी कर राहुल गांधी ने शिवसेना के लिए मुश्किल खड़ी कर दी थी. पिछले सत्र में जेपीसी की मांग को लेकर संसद में कड़ा रुख अपनाने वाले राहुल गांधी ने माफी मांगने के सवाल पर सावरकर को कटघरे में खड़ा किया था. कांग्रेस अडानी प्रकरण पर जेपीसी की मांग कर रही थी.

वहीं बीजेपी राहुल गांधी से भारत के ‘लोकतंत्र पर खतरे’ को लेकर लंदन में दिए गए बयान पर माफी मांगने का दबाव बना रही थी. राहुल गांधी ने बीजेपी की इस मांग का जवाब ये कहते हुए दिया था कि मैं सावरकर नहीं हूं, मैं गांधी हूं, इसलिए माफी का सवाल ही नहीं उठता है.

ऐसे में सावरकर को प्रतीकात्मक सम्मान देकर बीजेपी राहुल गांधी और कांग्रेस को करार जवाब दे रही है. बीजेपी का प्रयास ये साबित करने को लेकर भी है कि सावरकर की विरासत को आगे लेकर चलने का दम बीजेपी ही रखती है. वहीं शिवसेना कांग्रेस के साथ समझौता कर सावरकर का अपमान कर रही है

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