सेंगोल राजदंड एक तरह का राजदंड हैं जो सत्ता हस्तांतरण के समय दिया जाता हैं. सेंगोल को समृद्धि का प्रतीक राजदंड भी माना जाता हैं. इसका इतिहास और कहानी मौर्य साम्राज्य के समय से देखने को मिलती हैं. ऐसा कहा जाता हैं कि जिसे भी यह राजदंड मिलता हैं वह न्यायपूर्ण और निष्पक्ष शासन करता हैं. भारत में बने नए संसद भवन में यह सेंगोल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रदान किया जाएगा।
सेंगोल राजदंड की कहानी और इतिहास बहुत प्राचीन हैं
मौर्य शासनकालीन 322 ईसा पूर्व से लेकर 185 ईसा के मध्य पहली बार सेंगोल का प्रयोग किया गया था. भारतीय संस्कृति पर आधारित नवनिर्मित संसद भवन में 70 वर्षों के पश्चात् एक बार फिर सेंगोल राजदंड मोदी जी को दिया जाएगा जिसको लेकर अभी चर्चा का माहौल गर्म हैं.
सेंगोल की शुरुआत और इतिहास मौर्यकालीन माना जाता हैं. मौर्यकाल, गुप्तकाल, चोल साम्राज्य और विजयनगर साम्राज्य में भी इस ऐतिहासिक सेंगोल का प्रचलन था. सेंगोल की शुरुआत 322 ईसा पूर्व से लेकर 185 ईसा के मध्य हुई थी जब मौर्य शासक सत्ता हस्तांतरण के समय सेंगोल राजदंड का उपयोग करते थे. ना सिर्फ मौर्य बल्कि 320 ईस्वी से 550 ईस्वी तक गुप्त साम्राज्य में, 907 ईस्वी से लेकर 1310 ईस्वी तक चोल साम्राज्य में और विजयनगर साम्राज्य में 1336 से 1646 ईस्वी तक सेंगोल राजदंड को सत्ता हस्तांतरण के लिए प्रयोग में लाया जाता था.
विश्व में सेंगोल राजदंड का इतिहास
विश्व इतिहास में भी सेंगोल राजदंड का प्रयोग बहुत प्राचीन रहा हैं. वर्ष 1661 में इंग्लैंड की रानी का सॉवरेन्स ओर्ब बनाया गया था, यह वहाँ के राजा चार्ल्स द्वितीय के राज्याभिषेक का समय था. तब से यह प्रथा इंग्लैंड में चली आ रही हैं, जब भी कोई नया राजा या रानी बनती हैं उसको सेंगोल राजदंड दिया जाता हैं. अर्थात यह कह सकते हैं कि इंग्लैंड में यह प्रथा पिछले 362 सालों से चली आ रही हैं.
विश्व इतिहास पर नजर डाले तो यह व्यवस्था बहुत प्राचीन हैं. विभिन्न सभ्यताओं में इसे भिन्न-भिन्न नाम से जाना जाता था. मेसोपोटामिया सभ्यता में राजदंड को “गिदरु” नाम से जाना जाता था. गिदरु राजदंड का जिक्र मेसोपोटामिया सभ्यता की प्राचीन मूर्तियों और शिलालेखों में देखने को मिलता हैं. मेसोपोटामिया सभ्यता में राजदंड को देवी-देवताओं की शक्तियों और सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर देखा जाता था.
इतना ही नहीं ग्रीक-रोमन सभ्यता में भी इस राजदंड की महत्ता देखने को मिलती हैं. इस सभ्यता में ओलंपस और जेयूस जैसे देवताओं की शक्ति की निशानी के रूप में राजदंड होता था. शक्ति के प्रतीक के तौर पर प्राचीन समय में शक्तिशाली लोग, सेना-प्रमुख, जज और पुरोहितों के पास यह राजदंड होता था. रोमन राजा-महाराजा हाथी के दाँत से बने राजदंड का प्रयोग करते थे जिसे, “सेपट्रम अगस्ती” के नाम से जाना जाता था.
प्राचीनकालीन इजिप्ट सभ्यता में भी “वाज” नामक राजदंड को सत्ता और शक्ति की निशानी के तौर पर काम में लिया जाता था.
पूर्व पीएम नेहरु को मिला था सेंगोल
ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चला हैं की ब्रिटिश सरकार के अंतिम वायसराय माउंटबेटन ने नेहरू से देश की आजादी को किस प्रतीक चिन्ह के रूप में देखना चाहते हैं? लेकिन नेहरू को इस सम्बन्ध में कोई ऐतिहासिक जानकारी नहीं थी. तब नेहरू राजगोपालाचारी जी के पास गए जो कभी मद्रास के मुखिया रह चुके थे, उन्हें विभिन्न परम्पराओं का ज्ञान था. तब राजगोपालाचारी जी ने नेहरूजी को तमिल में प्रचलित राजदंड व्यवस्था के बारे में बताया. इस व्यवस्था के अनुसार यहाँ राजा नए राजा को राजदंड/सेंगोल प्रदान करता हैं जिसे सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता हैं.
नेहरूजी इस प्रथा के बारे में सुनकर बहुत खुश हुए और उन्होंने यह जिम्मेदारी स्वतंत्रता सेनानी राजगोपालाचारी जी को सौंप दी. जब नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने उसके बाद लार्ड माउंटबेटन ने उन्हें सेंगोल राजदंड प्रदान किया था. इस राजदंड पर नंदीजी की आकृति भी उभारी गई थी. आजादी से कुछ ही समय पहले यह राजदंड दिल्ली पहुंचा था. इस पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया गया और नेहरू जी को सौंपा गया था. यह घटना 14 अगस्त 1947 की रात्रि 11 बजकर 45 मिनिट की हैं.
पीएम मोदी को सौंपा जायेगा सेंगोल
28 मई 2023 के दिन फिर से इतिहास बनेगा जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी नए संसद भवन को देश को समर्पित करेंगे, सेंगोल वेबसाइट के मुताबिक इस दिन वर्ष 1947 की भांति ही यह सेंगोल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी को सौंपा जाएगा.
सबसे पहले इस सेंगोल को गंगाजल से पवित्र किया जाएगा. जब मोदीजी ने इसके बारे में सुना तो उनको यह तरीका बहुत प्रभावी और हमारी संस्कृति का प्रतीक लगा जिसके बाद गहन अध्ययन किया गया और अब एक बार फिर इतिहास बनने जा रहा हैं. यह सेंगोल लोकसभा स्पीकर की चेयर के पास रखा जाएगा और पुरे विधि-विधान के साथ 28 मई 2023 को मोदीजी को सौंपा जाएगा.