यूपी के उपचुनावों ने देश के राजनीतिक दृश्य को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है। गोरखपुर, फूलपुर और अररिया में हुए उपचुनावों के नतीजे क्या किसी बड़े राजनीतिक समीकरणों या बदलाव की और इशारा कर रहे है? इन उपचुनावों के परिणामों का कितना असर बीजेपी और अन्य पार्टियों पर पड़ेगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन वर्तमान में परिस्थितिया क्या कहती है उसका अनुमान अवश्य लगाया जा सकता है।
1. मोदी के बाद अब योगी नही
गोरखपुर यानी योगी:- जी हाँ आज से पहले शायद गोरखपुर का नाम लेते ही आपके दिमाग में सबसे पहला कोई चित्र अंकित होता तो वो था योगी। गोरखनाथ पीठ के महंत योगी आदित्यनाथ लगातार 5 बार गोरखपुर से सांसद रह चुके है। लेकिन उस सीट से परिणाम कुछ इस तरह से आएंगे ऐसा किसी ने अनुमान तक नही लगाया था।
गोरखपुर सीट अपने आप में एक ऐसी सीट है जिस पर बीजेपी और खुद सीएम योगी आदित्यनाथ की भी इज्जत दाव पर लगी थी। यह एक ऐसी सीट थी जहां से सीएम योगी आदित्यनाथ 2 लाख के भारी बहुमत के साथ सत्ता प्राप्त किया करते थे। लेकिन आज स्थिति कुछ ही महीनों में बड़ी तेजी के साथ बदली है। सीएम योगी ओर बीजेपी का वर्षों पुराना किला पल में बिखर गया।
यही नही गोरखपुर केवल भारतीय जनता पार्टी के लिए मात्र एक सीट नही थी। यह सीएम योगी की प्रतिष्ठा थी, उनका गढ़ था। इसीलिए इस उपचुनाव में प्रत्याशी न होते हुए भी योगी आदित्यनाथ को हार का दंश झेलना पड़ा है। देखा जाए तो यह योगी बनाम अन्य की लड़ाई थी।
यह उपचुनाव केवल चुनाव न होकर एक रण भूमि का रूप इस लिए भी ले चुका था क्योकि यहां एक तरफ तो सीएम योगी की छवि थी तो दूसरी तरफ बसपा और सपा पार्टी का गठबंधन इन दोनों के बीच कांग्रेस मानो मौन शक्ति के रूप में अपनी उपस्थिति दर्जा करवा रही थी।
ज्ञात हो कि,गोरखपुर सीट की पहचान बीजेपी से नही योगी आदित्यनाथ से होती है, और अगर आपकी पहचान ही कोई आपसे छीन ले तो आपके अस्तित्व पर कही न कही प्रशन चिन्ह लगने लग जाता है, ध्यान रहें यह पहचान थी सीएम योगी आदित्यनाथ की, यह पहचान थी उस सीट की जो लगातार 5 साल से बीजेपी की झोली में थी।
2014 के बाद बहुत तेजी से अगर कोई राजनीतिक मांग उठी तो वो है मोदी के बाद योगी परन्तु अब इस मांग पर विराम चिन्ह लगते दिखाई दे रहे है। पीएम मोदी के बाद विकल्प के रूप में देखे जाने वाले योगी आदित्यनाथ अब इस दौड़ में शायद पिछड़ते नजर आरहे है। इस लिए एक बार फिर 2019 में पीएम मोदी बनाम अन्य होता दिखाई दे रहा है।
2. भाजपा का एकमात्र विजयी सूत्र मोदी
पीएम मोदी देश में सबसे शक्तिशाली पीएम के रूप उबर के सामने आए है। पीएम मोदी चुनाव के बाद चुनाव और राज्य के बाद राज्य जीतते ही जा रहे है। भाजपा में कुछ लोग यह उम्मीद कर रहे थे कि मोदी के बाद योगी दूसरी पसंद हो सकते हैं, हालांकि उनके “गढ़” में मिली इस हार के बाद कही न कही इन कयासों पर विराम चिन्ह लग गया है। इन सबसे एक बात साबित होती है कि, बीजेपी में अगर आपको निरंतर बने रहना है तो अपने आप को परीक्षा की कसौटी पर लगातार खरा उतारते रहना पड़ेगा। किसी भी बीजेपी नेता को एक दूसरे के विकल्प के रूप में उभरने के लिए अपने आप को साबित करना होगा। और अब यही सबसे बड़ा चैलेंज रहेगा सीएम योगी आदित्यनाथ के लिए।
एक और विचारणीय तथ्य यह भी निकलता है कि,एनडीए गठबंधन में लौटने के बाद नीतीश कुमार का यह पहला चुनाव था। हालांकि अररिया पारंपरिक आरजेडी सीट है, यह हार पिछड़ी जातियों और महादलियों में कुछ कार्रवाई का संकेत दे सकती है। यदि इस हार के बाद नीतीश कुमार का कद कम होता है तो सम्भवतः मायावती राष्ट्रीय राजनीति में वापस आ सकती हैं।
3. आइए अब बात करते है 2019 की
2019 का चुनाव अपने आप में मोदी vs अन्य होने वाला है। और अन्य इसलिए क्योकि इस बार 2014 की तरह बीजेपी कांग्रेस फाइट शायद ही देखने को मिले क्योकि यहां से अगर अब मध्य प्रदेश और कर्नाटक में भी कांग्रेस पार्टी हार जाती है तो यह कांग्रेस पार्टी के अस्तित्व की लड़ाई हो जाएगी। एक के बाद एक निरंतर हार का सामना कर रही कांग्रेस के लिए कर्नाटक ओर मध्यप्रदेश एक बहुत बड़ी चुनौती साबित होने वाले है। अगर ऐसा हुआ तो काँग्रेस विपक्षी पार्टी कहलाने के भी काबिल नही रहेगी। अगर ऐसा हुआ तो समाजवादी पार्टी तृणमूल कांग्रेस बसपा आरजेडी व अन्य पार्टी ही विपक्ष के रूप में प्रतिनिधित्व करती नजर आएंगी
परन्तु 2019 के चुनाव से पहले पीएम मोदी के लिए भी कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ चुनाव मुख्य चुनौती रहने वाले है। विपक्षीय पार्टी का महागठबंधन कही न कही इस पूरे युद्ध को 2014 के कांग्रेस बीजेपी से कही आगे लेकर जाने वाला है। विपक्ष की रणनीति में कही न कही ममता, मायावती, सपा,आरजेडी, नवीन पटनायक जैसे महारथियों के होने की सम्भवना है। वही बीजेपी मोदी अस्त्र के साथ इस मैदान में उतरेगी।
लेखक: प्रदीप भंडारी सीईओ जन की बात