जन की बात के फाउंडर एंड सीईओ प्रदीप भंडारी ने राज्यसभा सांसद और पूर्व पत्रकार एमजे अकबर का साक्षात्कार लिया। जिसमें उनके हाल ही छपे लेख पर चर्चा की गई जिसमें भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के लिए गए फैसलों को लेकर राय दी गई थी।
"Jawaharlal Nehru refused Security Council membership despite advice of everyone around him, & letter of Sardar Patel " MJ Akbar (@mjakbar) to Pradeep Bhandari (@pradip103)
Complete video: https://t.co/5daPCucpTV#ChinaWillPay pic.twitter.com/Gvg7xGgmAZ
— Jan Ki Baat (@jankibaat1) July 2, 2020
प्रदीप भंडारी ने पहला सवाल पूछा कि 65 साल बाद पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को उनके लिए गए फैसले को लेकर दोष देना कितना उचित है? इस पर राज्यसभा सांसद एमजे अकबर ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से भारत चीन अंतरराष्ट्रीय संबंधों को लेकर कुछ बड़ी भूल हुई है। जिसमें भारत ने चीन के साथ अंतरराष्ट्रीय संबंध अपने राष्ट्रीय हितों को ताक पर रखकर स्थापित किए गए। जैसा कि हम जानते है कि 1947 के बाद तिब्बत को विश्व में एक अलग देश के रूप में बड़े देशों से मान्यता मिली हुई थी। जबकि सन यत सेन ने 1911 में ही कहा था कि चीन का एकीकरण तिब्बत के बिना नहीं हो सकता। यहां यह जरूरी है कि सन यत सेन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अच्छे दोस्त भी थे। शायद पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू शुरू से यही मानते थे। वर्ष 1924 में सन यत सेन ने कहा था कि कॉलोनाइजेशन के बाद भारत और चीन एशिया में बड़ी शक्ति के रूप में रहेंगे। इसके लिए भारत को तिब्बत को चीन का हिस्सा मानना पड़ेगा। वर्ष 1950 में विजय लक्ष्मी पंडित जो यूनाइटेड नेशन्स में भारत की प्रतिनिधि थी। उन्होंने 1950 में भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को काफी सारे पत्र लिखें जिसमें उन्होंने कहा था अमेरिका भारत को यूनाइटेड नेशन सिक्योरिटी काउंसिल में परमानेंट मेंबरशिप देने के लिए पब्लिक ओपिनियन बनाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने यूनाइटेड नेशन सिक्योरिटी काउंसिल की परमानेंट मेंबरशिप को केवल इसलिए इनकार कर दिया, कि चीन भारत से नाराज हो जाता।
अगला सवाल पूछा कि जिस तरह से पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने स्वीकार किया था कि चीन ने भारत के साथ विश्वासघात किया है क्या पूर्व प्रधानमंत्री को अपनी गलतियों का एहसास हो चुका था?
तो राज्यसभा सांसद एमजे अकबर ने कहा कि “पुराना बॉलीवुड गाना है कि सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या आए’ वर्ष 1962 मैं युद्ध में हार के बाद नेहरू का भी टूट गए थे। जिसके बाद उनका यह बयान सामने आया। जहां तक बात वर्ष 1962 की है। 1962 के युद्ध चीन की तरफ से छोड़ा गया। चीन के द्वारा भारत पर एकतरफा हमला किया गया। जिसके बाद भारत के इतनी कुशलता नहीं थी कि चीन की फौजों को वापस खदेड़ पाए,और चीन के द्वारा ही अपनी फौजों को वापस बुलाया गया। यानी चीन जितनी भी अपनी जमीन समझता था उसमें 1962 में उस पर कब्जा कर लिया। आज के दौर में चीन के द्वारा भारत के क्षेत्र पर क्लेम करना तर्कसंगत नहीं है।
आपको क्या लगता है कि नरेंद्र मोदी सरकार की विदेश नीति और पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की विदेश नीति में कितनी समानताएं और कितनी अलग है?
सांसद एमजे अकबर ने कहा कि वर्तमान परिस्थिति को लेकर कुछ लोग कह रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी चीन को वैसे ही डील कर रहे हैं जैसे पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू करते थे। प्रधानमंत्री मोदी की डिक्शनरी में पीछे हटने नाम का शब्द ही नहीं है। उनसे मैं कहना चाहता हूं कि जिस तरह से उन्होंने बांग्लादेश के साथ सीमा विवाद को सुलझाया। और जिस तरह से से पाकिस्तान जो आतंकवाद को अपनी स्टेट पॉलिसी बना चुका है। उसको विश्व मंच पर आइसोलेट करके सबक सिखाने का काम किया है।
क्या सरकार चीन को लेकर ओवरकॉन्फिडेंट है?
इस पर राज्यसभा सांसद एमजे अकबर ने कहा कि सरकार वर्तमान में भारत चीन सीमा पर विवाद को लेकर बिल्कुल जागरूक है। क्योंकि सेना अपनी सारी जानकारी पब्लिक डोमेन में नहीं ला सकती, इसीलिए काफी सारी चीजों को पब्लिक में डिस्कस नहीं किया जा सकता है। उन्हें मोदी सरकार की रक्षा नीति को लेकर पूरा विश्वास है।