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चीन की मक्की के बचाव के लिए मक्कारी

लश्कर-ए-तैयबा के आंतकी अब्दुल रहमान मक्की को चीन ने वैश्विक आंतकी घोषित होने से जिस तरह से बचा लिया, उससे आंतकवाद को लेकर उसकी नीति के बारे मे कोई संशय बाकी नहीं रह जाता है। भले ही चीन कहता रहा हो कि वह आंतकवाद के खिलाफ जंग मे दूसरे देशों के साथ है, लेकिन हकीकत यह है कि वह आंतकवाद फैलाने वाले देशों और संगठनों को न केवल हवा दे रहा है ,बल्कि अंतराष्ट्रीय मंचों पर उनका खुला समर्थन भी कर रहा है।गौरतलब है कि मक्की को वैश्विक आंतकी घोषित करने के लिए भारत और अमेरिका ने सुरक्षा परिषद में जो साझा प्रस्ताव रखा था, उसे चीन ने वीटो कर दिया। इसका मतलब तो यही हुआ कि चीन मक्की के पक्ष खडा है और उसे आंतकवादी नहीं मानता। मक्की को समर्थन देने का मतलब पाकिस्ताव की आंतकवाद नीति की वकालत करना है। जबकि दुनिया देख रही है कि पिछले कई दशकों से पाकिस्तान आंतकवाद का गढ बना हुआ है और कई आंतकवादी संगठन उसकी जमीन से अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं।हालांकि चीन और पाकिस्तान का गठजोड किसी से छिपा नहीं है। पाकिस्तान में चीन के गहरे आर्थिक हित हैं। ऐसे में अगर वह पाकिस्तान की आंतकवाद की नीति को खुला समर्थन दे रहा है को इसमें हैरानी की बात नहीं। चीन के इस कदम से आंतकवाद के खिलाफ भारत की मुहिम को धक्का तो लगा है, पर इससे एक बार फिर उसका असली चेहरा सामने आ गया । ऐसा नहीं कि मक्की की करतूतों से चीन अनजान है। मक्की मुंबई हमले के साजिशकर्ता और इसे अंजाम देने वाले लश्कर के सरगना हाफिज सईद का करीबी रिश्तेदार है। वह जम्मू-कश्मीर में आंतकी हमलों के लिए पैसा जुटाने और साजिश रचने, नौजवानों को आंतकी हिंसा के लिए उकसाने के काम करता रहा हैं। कई आंतकी मामलों में उसे पाकिस्तानी अदालत से सजा भी हो चुकी है। फिर भी चीन उसे आंतकी मानने को तैयार नहीं है तो जाहिर है कि वह खुद आंतकवाद का समर्थक है।

गौरतलब यही भी है कि अमेरिका ने भी मक्की पर बीस लाख डालर का इनाम घोषित कर रखा है। आश्चर्य की बात तो यह है कि अफगानिस्तान की सरकार में मंत्री सिराजूद्दीन हक्कानी को भी अमेरिका ने इनामी आंतकी घोषित किया हुआ है। लेकिन ये सारे आंतकी सरगना न सिर्फ दुनिया के आंतकवाद प्रभावित देशों को बल्कि संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक निकाय को अगर ठेंगा दिखा रहे हैं तो इसके पीछे निश्चित ही चीन और पाकिस्तान जैसे इनके रहनुमाओं की मेहरबानी है। हाल में ब्रिक्स देशों ( ब्राजील,रूस,भारत, तीन और दक्षिण अफ्रीका) के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैंठक में भी आंतकवाद का मुद्दा प्रमुखता के साथ उठा था।बैठक में चीन ने सभी सदस्य देशों के साथ आंतकवाद के खिलाफ सहयोग का वादा किया था। हालांकि पहले भी चीन ऐसे दिखावटी संकल्प जाहिर करता रहा है। लेकिन ब्रिक्स बैठक के अगले दिन ही सुरक्षा परिषद में उसने मक्की का मामला आते ही अपना असली चेहरा दिखा दिया ।

भले ही चीन इसके पीछे तकनीकी और प्रक्रियागत कारण बता रहा हो, लेकिन भारत तो लेकर उसका जो रूख है, वह जगजाहिर है। याद किया जाना चाहिए कि 2019 में भी भारत ने संयुक्त राष्ट्र में जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मौलाना मसूद अजहर पर पाबंदी लगाने का प्रस्ताव पेश किया था और तब भी चीन ने इसे कामयाब नहीं होने दिया था। ऐसे में कैसे माना जाए कि चीन आंतकवाद के खिलाफ कभी किसी का साथ देगा ?

-लेखक के विचार व्यक्तिगत हैं ।

 

 

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Abhishek Kumar
Abhishek Kumar
Abhishek kumar Has 4 Year+ experience in journalism Field. Visit his Twitter account @abhishekkumrr

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