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पीएसयू को लेकर राहुल गांधी का मोदी सरकार पर हमला , संबित पात्रा ने किया पलटवार कहा – राहुल झूठ बोलने और जनता को गुमराह करने की आदत से मजबूर 

पब्लिक सेक्टर कंपनियों (PSU) की नौकरियों में कमी का डेटा दिखाते हुए राहुल गांधी ने दावा किया है कि मोदी सरकार ने दो लाख से ज्यादा नौकरियां खत्म कर दी हैं. राहुल गांधी ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार पर तंज सकते हुए पूछा है कि क्या यही अमृतकाल है? राहुल गांधी ने ट्वीट में लिखा है कि आखिर ये कैसी सरकार है कि उद्योगपतियों का कर्ज माफ हो रहा है और PSU से सरकारी नौकरियां साफ हो रही हैं?

राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में लिखा है, ‘पीएसयू भारत की शान हुआ करते थे और रोज़गार के लिए हर युवा का सपना हुआ करते थे. मगर, आज ये सरकार की प्राथमिकता नहीं हैं. देश के पीएसयू में रोज़गार, 2014 में 16.9 लाख से कम हो कर 2022 में मात्र 14.6 लाख रह गए हैं. क्या एक प्रगतिशील देश में रोज़गार घटते हैं? हर साल 2 करोड़ रोज़गार का झूठा वादा करने वालों ने नौकरियां बढ़ाने की जगह 2 लाख से ज़्यादा खत्म कर दीं!’

संबित पात्रा ने किया राहुल गांधी पर पलटवार

जिसके बाद, राहुल गांधी पर भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने पलटवार करते हुए ट्वीट किया कि, राहुल गांधी अपनी झूठ बोलने तथा जनता को गुमराह करने की आदत से मजबूर है उनके झूठ का पर्दाफ़ाश करने के लिए कुछ तथ्य –

2013 में, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में कुल 20.3 लाख लोगों को रोजगार मिला था। 2022 तक यह संख्या 19.8 लाख हो गई, हालांकि BSNL/MTNL और Air India के पुनर्गठन और निजीकरण के बावजूद। इसके अलावा, Mission Recruitment के तहत, सीपीएसईज़ ने पिछले साल जून से 20,000 से अधिक नए रोजगार पैदा किए हैं, जो इस साल के आँकड़ो में दिखाई देंगे।

राहुल गांधी जो PSU हितों के बड़े हितैषी बनते है उन्हें एक बार UPA काल में PSU के performance पर भी एक बार नज़र डालनी चाहिए – PSE सर्वेक्षण (2013-14) में UPA काल के दौरान PSU के निराशाजनक प्रदर्शन उजागर किया था जिसने यह दर्शाया कि UPA सरकार (2004-2014) के दौरान, CPSEs के वित्तीय अनुपात, जैसे पूंजी नियोजित पर लाभ, PBDIEET पूंजी नियोजित पर, नेट मुनाफा पूंजी नियोजित पर, और नेट मुनाफा टर्नओवर पर, FY08 से लगातार गिर रहे थे, जो CPSEs की UPA काल में कम कुशलता, लाभकारिता, और प्रतिस्पर्धात्मकता को दर्शाते हैं।

यूपीए सरकार ने बीमार सीपीएसई को अपने कार्यकाल में बर्बाद कर दिया था तथा PSUs का नुकसान आसमान छू रहा था। BFIR और BRPSE के अनुसार बीमार सीपीएसई की संख्या 2004-05 से 2013-14 तक आधी हो गई, क्योंकि उनमें से कई बंद हो गये, विलय हो गया या बिक गए तथा इन CPSE का कुल घाटा 9,003 करोड़ रुपये से 597% बढ़कर 62,767 करोड़ रुपये हो गया। इसका मतलब यह है कि शेष बीमार सीपीएसई अधिक अव्यवहार्य और बेकार हो गए और जनता के पैसे की बर्बादी हुई।

UPA काल में भ्रष्टाचार का यह आलम था कि गुजरात हाईकोर्ट ने UPA की PSU नीति की आलोचना करते हुए कहा कि “सरकार कि प्राथमिकता सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, उनके जमाकर्ताओं के हित होने चाहिए ना की और नामांकितों या किसी अन्य हितधारक के नहीं”।

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