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जानिए क्या है ट्रिपल तलाक पर लोगों की राय: लोकसभा में सरकार द्वारा लाये गए बिल पर क्या है लोगों का कहना

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जन की बात‘ के सीईओ एवं फाउंडर प्रदीप भंडारी ने ‘जन की बात‘ की फाउंडिंग पार्टनर आकृति भाटिया के साथ जामा मस्जिद के निकट कबूतर बाज़ार पहुंचे और लोगों से ट्रिपल तलाक को गैरकानूनी बनाने के लिए लाये गए बिल पर उनकी प्रतिक्रिया जानना चाही

भारत एक ऐसा देश है जहाँ के जनतंत्र की मिसाल पूरे विश्व में दी जाती है. यहाँ के संविधान को दुनिया के सर्वश्रेठ संविधानों में से एक माना जाता है और यहाँ के नागरिकों को मिली स्वतंत्रता पूरे विश्व के लिए एक मिसाल है. भारतवर्ष महज़ एक देश ही नहीं अपितु एक विचारधारा भी है जहाँ सभी पंथ, सभी धर्म एवं विभिन्न विचारधारा का समागम स्थल भी है. जाहिर है ऐसे राष्ट्र में किसी प्रकार के भेदभाव अथवा पक्षपात का कोई स्थान नहीं होगा, न होना चाहिए. यह बात ठीक तौर पर समझ आती है की भारत के संविधान में अगर किसी प्रकार के भेदभाव की बात की भी गयी है तो वह पूर्णतया सकारात्मक है यानी की ‘पॉजिटिव डिस्क्रिमिनेशन’, जिसका सीधा अर्थ है की सभी को एक सामान अधिकार देने से पहले जरुरी है की जिनके साथ इतिहास में ज्यादा अत्याचार, जुल्म हुए हैं उन्हें बेहतर अधिकार दिए जाएँ और उन्हें बाकियों के बराबर का स्थान मिले.
बात सिर्फ किसी मजहब, वर्ग या पंथ को बराबरी का हक़ देकर भेदभाव मिटाने का नहीं था बल्कि बात लिंगभेद मिटाने की भी थी. इस कड़ी में अगर किसी मजहब में लिंग विशेष को सामान अधिकार नहीं दिए गए हैं तो उसे भी देने का प्राविधान होना चाहिए. लेकिन सवाल इस मोड़ पर आके रुक जाता है की आखिर किसी हद तक कानून, संविधान, सरकारें एवं अदालतें किसी की मजहबी प्रथा का अंत कर सकती हैं?
क्या वह किसी मजहब में दखलंदाज़ी नहीं कहलायी जाएगी? अगर ऐसा है तो फिर यह मान्य नहीं हो सकता. लेकिन जब हम वैध दखलंदाज़ी की बात करते हैं तो हम यह समझते हैं की किसी भी ख़राब प्रथा का न केवल विरोध करने का हमारा दायित्व बनता है बल्कि उस प्रथा को जड़ से उखाड़ फेंकने का जिम्मा भी हमारा ही होता है. यह काम हमारे लिए या तो सरकारें या अदालतें करती रही हैं. सती प्रथा उसका एक जीता जागता उदहारण है जहाँ एक गलत और लिंगभेदी प्रथा को देश में समाप्ति की ओर ले जाया गया जिसे करने में हम काफी सफल भी हुए.

जब हम ‘इंस्टेंट ट्रिपल तलाक’ अथवा ‘त्वरित तलाक-ऐ-बिद्दत’ की बात करते हैं तो हम यह समझते हैं की यह एक ऐसी प्रथा है जहाँ एक मुस्लिम शौहर अपनी बेगम (पत्नी) को तलाक मात्र तीन बार ‘तलाक़ तलाक़ तलाक़’ बोलकर दे सकता है और जरुरी नहीं की वो लिखित में हो. तलाक, बोलकर, फ़ोन पर, ईमेल पर और भी जरियों से हो सकता है (इस प्रथा में ऐसे उदहारण आये दिन आते रहे हैं). इस प्रथा को सुप्रीम कोर्ट ने अभी हाल ही में असंवैधानिक घोषित करके एक उम्दा उदहारण दिया की हमारे देश में इस प्रकार की मनमानी, एकपक्षीय एवं विवेकाधीन प्रथा का कोई स्थान नहीं फिर भले ही इसके लिए किसी मजहब विशेष में सालों से चले आ रहे रिवाज़ को कानूनन अमान्य ही क्यों न घोषित करना पड़ जाये. हम सभी भारतवासियों को यह समझ लेना होगा की “कोई भी प्रथा तब तक ठीक है जबतक वो कुप्रथा में न बदल जाये”.
आज नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली मौजूदा केंद्र सरकर ने ‘त्वरित ट्रिपल तलाक’ को गैरकानूनी बनाने के लिए एक बिल लोकसभा में पास करवा दिया है जिसका सीधा सा अर्थ यह होगा की अब कोई भी मुस्लिम शौहर अगर अपनी बेगम को ‘त्वरित ट्रिपल तलाक’ देता है तो उसे तीन साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है. हमने अपने सर्वे में भी यह पाया की 80% महिलाओं ने ‘त्वरित ट्रिपल तलाक’ का विद्रोह किया और 20% ने इसे उनके मजहब का अभिन्न अंग माना, जबकि पुरूषों में यह आंकड़ा 50-50 का रहा.
इसी कड़ी में ‘जन की बात‘ के सीईओ एवं फाउंडर प्रदीप भंडारी ने ‘जन की बात‘ की फाउंडिंग पार्टनर आकृति भाटिया के साथ जामा मस्जिद के निकट कबूतर बाज़ार पहुंचे और लोगों से ट्रिपल तलाक को गैरकानूनी बनाने के लिए लाये गए बिल पर उनकी प्रतिक्रिया जानना चाही. महिला सशक्तिकरण के लाये गए इस बिल के बारे में लोगों ने विभिन्न राय रक्खी.

प्रदीप भंडारी ने कार्यक्रम की शुरुवात इन पंक्तियों से की

खुदा से यह दुआ है मेरी की रख्हे वो तुझे मेरी बद्दुआ से मेहफ़ूज़
परवरदिगार बक्शे तुझ तक पहुँचने से, मेरे बच्चों की आंसुओं की आग
तेरी खातिर अबसे पहले भी, मैंने खुदको दिए हैं बहुत से तलाक
जा मैं भी करती हूँ आज़ाद तुझे, तलाक, तलाक, तलाक, तीन तलाक.

सबसे पहले हम जुड़े एक सज्जन से, जिन्होंने कहा, की अभी तक हमने बिल देखा नहीं है, हालाँकि शरीयत के हिसाब से सब चलना चाहिए लेकिन एसएमएस, फ़ोन पर दिए गए तलाक का कोई मतलब नहीं. जब हमने उनसे पूछा की तलाक के बाद महिला को बच्चे अपने पास रखने का प्रावधान है, तो उसपर उन्होंने कहा की तलाक के बाद महिला को खर्चा-पानी मिलता है और बच्चे को वो साथ ले जा सकती है, जब बच्चा बड़ा हो जाये तो वो अपना फैसला खुद ले सकता है.
एक और सज्जन से हमने बिल के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा की, की उन्होंने बिल नहीं देखा लेकिन तलाक आमने सामने होता है और एसएमएस और फ़ोन के जरिये तलाक नहीं दे सकते हैं, उन्होंने कहा की शरीयत आमने सामने तलाक देने की बात कहता है. इस बीच सीईओ भंडारी ने पूछा की आखिर क्यों महिला को पुरुष से तलाक के मसले में कम अधिकार है? इसपर उन्होंने कहा की आमने सामने तलाक होना सही. शरीयत के बारे में समझते हुए कहा की, “जहाँ शौहर को अपनी बेगम से दिक्कत हो रही तो वो कुछ कुछ अंतराल पर अपनी बेगम से बोलते रहना चाहिए की वो उसे तलाक दे देगा अगर तीन बार बोलने के बाद भी चीज़ें नहीं सुलझती तो वो उसे तलाक दे देगा, यह असल मायने में तलाक है“.
आपको बता दें की आज यह उत्तर प्रदेश के रामपुर में गुल अफ़्शासान को तलाक सिर्फ इसलिए दे दिया गया क्यूंकि वो सुबह देर से सोकर उठी.

सीईओ प्रदीप भंडारी ने ट्रिपल तलाक को समझते हुए बताया की, मुद्दा शरीयत या नॉन- शरीयत का नहीं है और शरीयत में यह कहीं नहीं लिखा है की ट्रिपल तलाक एक इंस्टीटूशनल तरीका है तलाक देने का. और यह साफ़ तौर पर महिलाओं के हक़ के खिलाफ है. उन्होंने आगे यह भी कहा की कहीं न कहीं पुरषों को महिलाओं के ऊपर से अपनी प्रबलता/प्रभाव नहीं छोड़ना चाहते हैं.

आगे बढ़ते हुए एक महिला मिली जिन्होंने ट्रिपल तलाक और महिलाओं को समान अधिकार न मिलने के सवाल पर कहा, “शरीयत में लिखी चीज़ लागू रहनी चाहिए, लोगों ने गलत धारणा बनायीं है, शरीयत में सामान अधिकार है और अगर मियां बीवी में आपसी तालमेल नहीं बैठ रहा तो उनको आपसी बातचीत का मौका देती है शरीयत.” उन्होंने आगे कहा, “तलाक वो लोग देते हैं, जिन्हे औरत पर अपना प्रभाव रखना चाहते हैं, जिन्हे कुरान की समझ है वो इस तरह से तलाक नहीं देते जैसे आजकल होता है और अगर तलाक होता भी है तो मेहर दी जाती है, जब शौहर छोड़ता है तो उसे अपनी कमाई के हिसाब से उसको अपना हिस्सा देना पड़ेगा. उन्होंने यह भी कहा, “हमारे शरीयत में हलाला का प्राविधान है, जिस शौहर को उसके मायने पता हैं वो इस तरह से औरत को कभी तलाक नहीं देता और यह कहना गलत होगा की महिलाओं को अधिकार नहीं तलाक देने का, हमारे इस्लाम में अगर महिलाओं को साथ नहीं रहना तो वो उलेमाओं के पास जाकर कह सकती हैं की मुझे अलग होना है”.
सीईओ प्रदीप भंडारी सुप्रीम कोर्ट में ट्रिपल तलाक के मुद्दे की सुनवाई के दौरान खुद मौजूद थे, उन्होंने यह पाया की ‘त्वरित ट्रिपल तलाक’ की बात कहीं कुरान में नहीं लिखी है और यह सिर्फ मौलवियों के द्वारा कुरान की मिसरीडिंग है.
बिल के बारे में सीईओ प्रदीप भंडारी ने कुछ बातें हमे बताई
१- अगर कोई बोलकर, एसएमएस या कॉल पर ‘त्वरित ट्रिपल तलाक’ देता है तो ३ साल तक की सजा हो सकती है.
२- अगर तलाक होता है तो महिला को मेंटेनेंस का हक़ है
३- अगर माइनर बच्चा है तो महिला को उसकी कस्टडी मिल सकती है
४- मुस्लिम महिला को अब एक तरीका दिया गया है त्वरित ट्रिपल तलाक’ के मुद्दे से जुड़े विवाद को लेकर वो अदालत तक पहुँच सकती है.
फाउंडिंग पार्टनर आकृति भाटिया ने यह भी बताया की मौजूदा नरेंद्र मोदी की सरकार ने जोर दिया है की ‘त्वरित ट्रिपल तलाक’ जैसी प्रथा हटनी चाहिए, लेकिन कई सारे महिलाओं के लिए काम करने वाले संगठनो ने भी काफी दबाव बनाया की ऐसी प्रथा को नकारना चाहिए.
हालाँकि हमसे बात करने वाले कई लोगों ने मौजूदा बिल में दिए गए सजा के प्राविधान को गलत बताया.
लाइव वीडियो के दौरान एक किस्सा ऐसा भी सामने आया की कई मुस्लिम महिला ने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया, जिससे हमने पाया की महिलाओं को आज भी कहीं न कहीं अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने की हिम्मत नहीं हो पाती. हमसे बात करते हुए कुछ महिलाओं ने डरते हुए जरूर कहा की गलत है ‘त्वरित ट्रिपल तलाक’ लेकिन कहीं न कहीं पुरूषों की मौजूदगी में उसके आगे वो कुछ नहीं बोल पायी.
सीईओ प्रदीप भंडारी ने यह पाया की कुछ पुरुष अपनी डोमिनेन्स को बरक़रार रखना चाहते हैं इसलिए वो ‘त्वरित ट्रिपल तलाक’ के केसेस में में सजा को गलत माना.
फाउंडिंग पार्टनर आकृति भाटिया ने यह भी बताया की ‘त्वरित ट्रिपल तलाक’ के मुद्दे को राजनीती से न जोड़ा जाये, इसे महिलाओं के अधिकार से ही जोड़कर देखना चाहिए. औरतों को इंसाफ देने पर जोर होना चाहिए.
सीईओ प्रदीप भंडारी ने ‘त्वरित ट्रिपल तलाक’ को महिला के अधिकारों के खिलाफ बताया, और बताया की सरकार ने इस कानून को इसलिए लाया है क्यूंकि अब यह महसूस किया जा रहा है की इस कुप्रथा को समाप्त किया जाना चाहिए. यह लड़ाई सिर्फ और सिर्फ महिलाओं को अधिकार देने की बात है, उन्हें पुरूषों के बराबर लाने के यह एक पहल भर है.
उन्हें यह कहा की सरकार द्वारा लाया गया बिल एक बेहतर बिल है और इसपर और चर्चा की जानी चाहिए.

 

यह स्टोरी स्पर्श उपाध्याय ने की है

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