जन की बात पहुंचा बागन बाजार में. हम जानने पहुंचे नरेगा से आये हुए पैसों का क्या हुआ? इस इलाके में पहले चाय के बागान होते थे, अब यहाँ तालाब के लिए गड्ढा खुदा पड़ा है, जहाँ पर मछली पालन होना था लेकिन कुछ भी नहीं हुआ. इस प्रोजेक्ट के लिए पैसे भी आये थे लेकिन वो कहाँ गए मालूम नहीं. चाय की बागान बंजर जमीन हो चुकी है. २५ साल से बागान बंद पड़े हैं. जो पहले चाय के बागान में काम कर रहे थे, वो आज मजदूरी के धंधे में आ चुके हैं. १२ लाख ५६ अज़्ज़ार खर्च करने के बाद भी बस एक गड्ढा ही खुद पाया.
आगे रिपोर्टर राहुल ने बताया की बाहरी इलाकों में मौजूदा सरकार के खिलाफ लोग नहीं बात करते हैं. लेकिन अंदर के क्षेत्रों में लोग बोलने लगे हैं. वो परेशां हैं. जहाँ कोई भी मीडिया चैनल नहीं जा रहा है वहां जन की बात पहुँच रहा है.
आगे राहुल एक व्यक्ति से बात कर रहे थे, उन्होंने बताया की चाय के बागान बंद कर दिए गए हैं. उन्होंने कहा की हमारी आमदनी के रस्ते बंद करदिये जाएंगे तो लोग गलत ढंगे से पैसे कमाने के ओर बढ़ने को मजबूर होंगे.
एक और युवा ने बताया की, “यहाँ के चाय के बागान के मैनेजर को मार के भगा दिया गया. यहाँ के राजनीतीक पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पैसे न मिलने के कारण चाय बागान बंद करवा दिए”.
उन्होने यह भी बताया की चाय के बागान पर हमारा रोजगार टिका हुआ था, लेकिन आज अब हमे मजदूरी करने दूर इलाकों में जाना पड़ता है. महिलाएं ईंट ढोने दूर दूर इलाकों में जाती हैं.
एक और युवा ने बताया की जन की बात से पहले हमारे पास मीडिया का कोई चैनल नहीं आया और हमारी समस्याएं किसी ने नहीं सुनी.
रिपोर्टर राहुल ने बताय की शहरी इलाकों में सब सरकार से खुश थे लेकिन गाँव के इलाकों में लोगों की बहुत समस्याएँ हैं.
आगे एक और व्यक्ति ने हमे बताया की, “यहाँ कोई सुविधा ही नहीं है. बीपीएल कार्ड में १० लोगों के नाम होते हैं. जिसके लिए लोग परेशां हैं.”
फिर Founder-Ceo प्रदीप भंडारी ने हम सभी को बताया की, “आज से पहले कोई सबल विरोधी नहीं था. यहाँ के इलाकों में बताया की सरकारी योजनाओं का फायदा उन्हें नहीं मिलता जो किसी दूसरी पार्टी को सपोर्ट करते हैं उन्हें भत्ता नहीं दिया जाता, और डर और भय व्याप्त है. जनतंत्र में सबको सब तरह के विचार रखने और विरोध करने का अधिकार होना चाहिए.
आगे देखना होगा की किसकी सरकार यहाँ बनने वाली.