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बंगाल चुनाव में हिंसा को लेकर बीएसएफ का बड़ा बयान, चुनाव आयोग पर लगाया ये आरोप

हिंसा और बमबारी के साथ पश्चिम बंगाल पंचायत की 73,887 सीटों पर शनिवार को वोटिंग हुई। चुनाव से एक रात पहले से अब तक चुनावी हिंसा के कारण 18 लोगों ने अपनी जान गवाई है, वहीं दर्जनों घायल हुए हैं। ऐसा तब देखने को मिला जब कलकत्ता हाई कोर्ट के निर्देश पर चुनाव के लिए 822 कंपनी केंद्रीय बलों की तैनाती की गई थी।

पश्चिम बंगाल राज्य चुनाव आयोग के अनुसार, इस चुनाव में 22 जिलों की 63,229 ग्राम पंचायत सीटों, पंचायत समिति की 9,730 सीटों और जिला परिषद की 928 सीटों पर प्रत्याशियों की किस्मत दांव पर लगी है। मतगणना 11 जुलाई को की जाएगी।

चुनावी हिंसा को लेकर राज्य चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। बीएसएफ ने राज्य चुनाव आयोग को एक चिट्ठी लिखी है, जिसमें कहा गया है कि उनके मांगने के बावजूद आयोग ने उन्हें संवेदनशील बूथों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी। अगर संवेदनशील बूथों की जानकारी दी गई होती, तो केन्द्रीय बलों की तैनाती आसान हो जाती।

आगे चिट्ठी में कहा गया है कि हिंसा की ज्यादातर घटनाएं उन बूथों पर हुई हैं, जहां राज्य पुलिस तैनात थी। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री निशीथ प्रमाणिक ने भी कहा कि यह पूरी तरह से लोकतंत्र की हत्या है और एक राज्य चुनाव आयोग का किसी एक पार्टी के लिए काम करना लोकतंत्र के सख्त ख़िलाफ़ है।

मतदान के दौरान चुनावी हिंसा के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। उत्तर 24 परगना के बैरकपुर में जमकर हिंसा हुई। मोहनपुर ग्राम पंचायत में असामाजिक तत्वों ने खुलेआम बंदूक लहराई और एक निर्दलीय कैंडिडेट के साथ मारपीट की।

इसके अलावा उत्तर 24 परगना के पीरगाछा में एक निर्दलीय उम्मीदवार के बूथ एजेंट अब्दुल्ला की हत्या कर दी गई। कूच बिहार में एक व्यक्ति बैलेट बॉक्स लेकर भाग गया। कूचबिहार के तूफानगंज और फोलिमारी से चाकूबाजी और हिंसा की खबरें आई हैं। मालदा के गोपालपुर पंचायत के बालूटोला में कांग्रेस और टीएमसी कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हुई और बम फेंके गए।

पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव से पहले ही हिंसा का दौर शुरु हो गया था। इसे देखते हुए इन चुनावों के लिए केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया था। पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने भी मतदान केंद्रों का दौरा किया और मतदाताओं एवं उम्मीदवारों से बातचीत की। सुरक्षा बलों को परिणाम घोषित होने के बाद भी दस दिनों तक रुकने का आदेश दिया गया है, ताकि चुनाव के बाद किसी भी तरह की हिंसा को रोका जा सके।

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