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क्या है EVM और VVPAT की कहानी?: पढ़िए हमारी रिपोर्ट और जानिए गुजरात में लोग EVM Tampering के बारे में क्या सोंचते हैं

जन की बात की टीम गुजरात में प्रथम चरण के चुनाव के दौरान १०० बूथ पर मौजूद थी और वहां मौजूद लोगों से वहां की व्यवस्था और सुविधा पर बात की. हमे अधिकतर लोग EVM मशीन से खुश दिखे, और सभी VVPAT मशीन के इस्तेमाल को एक अच्छा कदम मान रहे थे. हालाँकि कुछ जगह EVM के हीट-अप होने की ख़बरें आयी जिस वजह से वोटिंग थोड़ा देर डिले हुई. इसके अलावा प्रथम चरण का चुनाव बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से हुआ.

भारत देश में चुनाव एक त्यौहार है, ये वह उत्सव है जहाँ जनतंत्र को सेलिब्रेट किया जाता है. जहाँ सभी पंथ, सभी वर्ग, सभी धर्म, सभी आचरण, सभी परंपरा रखने एवं मांनने वाले जन एक ही समय एक ही मंच के नीचे आकर अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं. यह लोक-तंत्र की जीत के सामान लगता है और यह चुनाव दर चुनाव हमे एहसास करवाता है की हम भारत के लोग जनतंत्र को कायम रखने के लिए तैयार हैं.

वोटिंग प्रक्रिया जैसा की हम सभी जानते हैं, वह पहले बैलट पेपर पर हुआ करती थी जहाँ पर जनता अपने मनपसंद प्रत्याशी के नाम की पर्ची बैलट बॉक्स में डाला करती थी. हालाँकि इस प्रक्रिया में कुछ समस्याएं थी जिनमे से प्रमुख समस्या थी प्रिंटिंग का खर्चा, उसका स्थनांतरण एवं लाखों की संख्या में बैलट बॉक्स का स्टोरेज. इस समस्या से निजात पाने का एकमात्र तरीका था की वोटिंग प्रक्रिया को इलेक्ट्रॉनिक कर दिया जाए और इसी कड़ी में देश को EVM टेक्नोलॉजी की ओर बढ़ना पड़ा.


EVM जिसका अंग्रेजी में पूरा मतलब है (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) प्रथम बार उपयोग सं १९८२ में केरला के ‘नार्थ-परूवर’ विधानसभा के बाइ-इलेक्शन में हुआ था. उसके बाद सं १९९९ से लगातर इसका उपयोग केंद्र, राज्य एवं नगर पालिका चुनाव में किया जाता है.
विवाद


EVM अच्छे खासे विवाद का शिकार भी रहा है जिसमे से प्रमुख थे उसकी टैंपरिंग को लेकर. विवाद से जुड़ा प्रथम वाकया था एक कांफ्रेंस में जिसकी अध्यक्षता भाजपा के राज्यसभा संसद सुब्रमणियम स्वंय कर कर रहे थे, जहाँ इस बात पर बहस हुई की EVM टैम्पर प्रूफ नहीं है, यह मामला हिघ्कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच और २०१३ में सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्शन कमीशन को EVM मशीन के साथ ही साथ VVPAT मशीन का इस्तेमाल करने का आदेश दिया.

क्या है VVPAT?
VVPAT का पूरा अर्थ होता है ‘वोटर वेरिफ़िएड पेपर ऑडिट ट्रेल’ अर्थात वह मशीन जो मतदाता को यह सुनिश्चित करवाए की उसने EVM पर जिस प्रत्याशी को वोट दिया है, वास्तव में वोट उसी प्रत्याशी को गया है. इस मशीन में एक डिस्प्ले होता है जिसमे जैसे ही EVM पर किसी प्रत्याशी के नाम पर बटन दबाया जाता है वैसे ही उस डिस्प्ले में उसी प्रत्याशी के नाम की पर्ची दिखाई देती है और फिर वो पर्ची उसी मशीन में रह जाती है. इन पर्चियों का उपयोग EVM की सत्यता को सत्यापित करने के लिए उपयोग में लिया जा सकता है.हमारी गुजरात में चुनाव यात्रा के दौरान भी लोगों से हमने EVM टैंपरिंग के मुद्दे पर बात की लेकिन लोगों ने इसे महज़ एक अफवाह बताया. ऐसे ही एक युवक से हमारी बातचीत देखिये वीडियो में.

 

 

– यह स्टोरी स्पर्श उपाध्याय ने की है

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