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बिहार में GST Collection पहुंचा माइनस में, न नौकरी, न उद्योग, न शिक्षा, राज्य को जातीय जनगणना की जरूरत या विकास की?

1 अक्टूबर को वित्त मंत्रालय ने राज्यवार GST कलेक्शन का डाटा जारी किया है. सितंबर 2023 के दौरान 1,62,712 करोड़ रुपये सकल जीएसटी राजस्व एकत्र किया गया जिसमे वर्ष दर वर्ष 10 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई. वित्त वर्ष 2023-24 में चौथी बार जीएसटी संग्रह 1.60 लाख करोड़ रुपये के पार पहुंचा. वित्त वर्ष 2023-24 की पहली छमाही के लिए 9,92,508 करोड़ रुपये का सकल जीएसटी संग्रह वर्ष दर वर्ष 11 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है. वित्त वर्ष 2023-24 में औसत मासिक सकल जीएसटी संग्रह 11 प्रतिशत की वर्ष दर वर्ष वृद्धि के साथ 1.65 लाख करोड़ रुपये रहा.

लेकिन इन आंकड़ों में एक बात जो चौंकाने वाली है वो ये की बिहार राज्य में कुल GST कलेक्शन पिछले वर्ष के मुकाबले 5 प्रतिशत कम दर्ज किया गया है. यानि की वित्त मंत्रालय के आंकड़ों में बिहार का GST कलेक्शन माइनस 5 प्रतिशत दर्ज किया गया. जो पिछले साल के 1,466 करोड़ के मुकाबले इस बार मात्र 1,397 करोड़ ही रहा.

लेकिन गौर करने वाली बात ये है की बिहार सरकार इस वक़्त राज्य में विकास करने से ज्यादा जातीय जनगणना को लेकर काफी उतावली नजर आ रही है, बिहार सरकार ने आज खुद अपनी तरफ से राज्य की जातीय जनगणना के आंकड़े जरी कर दिए. जबकि राज्य को जातीय जनगणना का अधिकार नहीं है. जबकि दूसरी तरफ बिहार में विकास का पहिया किस कदर पंचर है ये सब को मालूम है, इसलिए सबसे बड़ा सवाल यही है की पिछड़ेपन की गर्त में जाते बिहार को उस वक़्त जातीय जनगणना की ज्यादा जरूरत है या विकास की.

शिक्षा का बुरा हाल

भले ही सरकार लाख दावे करे, लेकिन बिहार के सरकारी स्कूलों में स्थिति खराब है। शिक्षा व्यवस्था किस बदहाल स्थिति में है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वहां 90 फीसदी प्राथमिक विद्यालयों में मैदान, पुस्तकालय यहां तक की पर्यापत चारदीवारी भी नहीं है। इसी तरह स्कूलों में न तो बच्चे हैं और न ही पर्याप्त शिक्षक, जो हैं भी उनमें से करीब आधे ड्यूटी से गायब मिले।

सर्वे किए गए दो-तिहाई प्राथमिक विद्यालयों और करीब-करीब सभी उच्च प्राथमिक विद्यालयों में छात्र-शिक्षक अनुपात 30 से ऊपर है। मतलब की केवल 35 फीसदी प्राथमिक विद्यालय और पांच फीसदी उच्च-प्राथमिक विद्यालय ही छात्र-शिक्षक अनुपात के लिए तय नियमो को पूरा करते हैं।

बेरोजगारी में चौथे स्थान पर बिहार

बेरोजगारी के मामले में राष्ट्रीय स्तर पर बिहार चौथे स्थान पर है. हाल के कुछ दिनों में राज्य में ग्रामीण बेरोजगारी में इजाफा हुआ है. बिहार में बेरोजगारी दर सीएमआईआई के मुताबिक फिलहाल 13.66 है. राहत देने वाली खबर बिहार के लिए यह है कि अप्रैल माह की तुलना में बेरोजगारी दर में 7.8% की कमी आई है. एनसीएसपी के आंकड़ों के मुताबिक पिछले एक साल के दौरान बिहार में बेरोजगार युवाओं की संख्या में जबरदस्त वृद्धि हुई है. मार्च 2021 तक राज्य में पंजीकृत बेरोजगार युवाओं की कुल संख्या 7800259 थी. पिछले 10 महीने में यह संख्या 267635 हो गई. इतना ही नहीं जब भी बिहार में किसी भर्ती का पेपर होता है तो पेपर होने से पहले ही वो लीक हो जाता है.

एनसीएसटी पोर्टल पर नाम दर्ज करवाते हैं बेरोजगार युवा

एनसीएसटी एक सरकारी वेबसाइट है. जहां बेरोजगार युवा अपना नाम दर्ज कराते हैं और राज्य सरकारें उनके प्रोफाइल के हिसाब से भर्ती प्रक्रिया के माध्यम से उन्हें नौकरी प्रदान करती है. बेरोजगारी के चलते बिहार से रोजी रोटी के लिए पलायन भी बदस्तूर जारी है. बिहार से दूसरे राज्यों में जाने वाले 55% लोग रोजी-रोटी के लिए पलायन करते हैं. देश में पलायन करने वाली कुल आबादी का 13% हिस्सा सिर्फ बिहार से है.

इसके अलावा बिहार में उद्योग धंधों का भी बुरा हाल है, कोई भी इंडस्ट्री बिहार में सही से ग्रो नहीं कर पा रही है, जिसकी वजह से हर साल बिहार के लाखों युवा अपने ही राज्य से पलायन कर दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में रहने को मजबूर है. लेकिन बिहार की नितीश सरकार को इस वक़्त इन सभी से ज्यादा जरूरी जातीय जनगणना का काम लगा.

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Vipin Srivastava
Vipin Srivastava
journalist, writer @jankibaat1

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